Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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सातत्थ ॥९२३॥ आलिंगिय सिट्ठिसुअंसप्पणयं साहियं सवुत्तंतं । भणइ य तुम्ह पसाएण संपया मे इमा पत्ता ॥९२४॥ एयं दारजं एसो य परियणो देसकोसकुट्ठारो । सबं च तुहाऽऽयत्तं अहं च आइससु करणिज्जं ॥९२५॥ अह देववंदणत्थं समागओद
तत्थ धम्मरुइसाहू । अइसयणाणी वंदित्तु सो जिणं सुहसमासीणो ॥९२६॥ पंकयमुहेण वसहद्धएण सहिएण वंदिर
विहिणा । पुट्ठो भयवं! साहसु अम्ह रयणत्तयसरूवं ॥९२७॥ भणइ मुणी नाणेणं मुणि वसहद्धयस्स पुवभवं । णाणं च18 हादसणं तह चरणं च तहिं तु नाणमिणं ॥९२८॥ सर्व पि हु सुयणाणं तस्स वि आईइ पंचनवकारो । तस्स य तुब्भेहि |
फलं दिटुं अह सुणह सेसदुगं ॥९२९॥ तत्थ य दंसणरयणं रयणत्तयउत्तम जओ तम्मि । संतम्मि नाणचरणाणि संति नो ताणि तेण विणा ॥९३०॥ तं पुण अरिहं देवो जावजीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणभणियं चिय तत्तं इय बुद्धी होइ सम्मत्तं ॥९३१॥ चारित्तं पुण सावजजोगपरिवजणेण जहजुग्गं । देसेण व सबेण व गिहिसाहूणं जिणुद्दिढ ॥९३२॥ रयणत्तयं च एवं सवगुणस्सेणिमूलमक्खायं । सबो वि इमं फासित्तु नियमसो पावए मुक्खं ॥९३३॥ इय सोउं ते दुण्णि वि* धम्मरुइमुणिस्स पायमूलम्मि । समणोवासगधम्म सम्मत्तजुयं पवजंति ॥९३४॥ तो पुणरवि नमिय मुणिं पहिचित्ता. गिहेसु ते पत्ता । अह वसहद्धयकुमरो रजम्मि निवेसिओ पिउणा ॥९३५॥ जुवरजपए तेण ठविओ पंकयमुहो सबहुमाणं । तो दो वि परमपीईसहिआ माणंति रजसुहं ॥९३६॥ कालविणयाइअट्ठप्पयारआयारसंजुयं नाणं । सबुजमेण तह ते पढंति पाढंति तह अण्णं ॥९३७॥ तह पूर्यति तिसंझं देवं निस्संकियाइगुणकलिया। मेरुख निप्पकंपा धरंति सम्मत्तवररयणं ॥९३८॥ पालंति निरइयारं सावगधम्म दुलासविहं पि । अणिगृहियबलविरिया तवंति तिवं तवं च सया॥९३९॥ तिविहं पि
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