Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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सुदंसणारियम्मि +
॥ १०१ ॥
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किंच – सुकयफलं सुरलोओ पावफलं तह य नत्थि नरयगई । जीवाऽभावाड श्चिय न य कत्तितं न भोइत्तं ॥७२० ॥ इंद्रियसमागमो जो तं जीवं कप्पयंति मूढजणा । मरणं च भूयसंहइविगमो जो तं भणंति पुणो ॥ ७२१|| तिलसो वि हु छिज्जंते पिक्खज्जइ केवलं तणुच्छेओ । कत्थइ न अत्थि हिंसा हिंसगहिंसिज्जविरहाओ ||७२२ || नत्थित्थ तहा लोए सबा वि हु वचणाइया किरिया । मूढमइकप्पियाओ वंचगवंचिज्जगयभावा ॥७२३॥ जीवम्मि विजमाणे सम्राणि इमाणि संगयमुविंति । तदसइ उवहासकराणि सीमकरणं व गामविणा ॥७२४ ॥ ता इत्थ तवो नियदेहजायणा संजमो य जो कोइ । भोगाण वंचना सा सबा वि निरत्थिया किरिया ॥७२५॥ ता भो लोया ! मइमंतसेहरा ! अप्पणो य हियकामा । मुत्तुं कुग्गहमेयं किरियावाइत्तणसरूवं ॥ ७२६ ॥ मिद्धं भुंजह इटुं च पियह अण्णं पि कुणह सिच्छाए । भक्खाऽभक्खाइविहिं मुत्तुं जललवचले लोए ॥७२७॥ एवं सो कुरुचंदो अप्पं च परं च तदुभयं च भया । सावज्जकज्जसज्जो बुग्गाहंतो कुणइ रज्जं |||७२८|| महमोहमोहियमई बहुजीवाणं वहे पयहंतो । चिट्ठइ पाविकरुई खुरइव एगंतधारो सो ॥७२९ ॥ तह चैव य निक्करुणो खरकर नियरेण करणवसवत्ती । संतावइ धरणियलं खरकिरणो गिम्हसमइच ॥७३०॥ अह पत्ते पजंते असायवेयणीयकम्मबहुलता । पंच वि इंदियविसया विवरीया तस्स संजाया ॥७३१ ॥ गीयं सुइमहुरं पि हु चिंता खरकरहकायसरसरिसं । रूवं च सुंदरं पि हु पिच्छइ विकरालबीभत्थं ॥७३२ || कप्पूराऽगुरुगंधं पि गणइ अचंतपूइदुग्गंधं । खंडमहुसकराइ वि मण्णइ लिंबाउ कडुययरं ॥ ७३३ ॥ पट्टउलहंसतूलं कंटगसेज्जं व जाणइ हयासो । गोसीसचंदणरसं मुम्मुरफरिसं व | वेइ ॥ ७३४ ॥ एवं पडिकूलेहिं वाहिज्जतो स इंदियत्थेहिं । महिसुब आरडंतो चिट्ठइ रतिं पि दियहं पि ॥७३५॥ उच्छलइ
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रयणत्तयस्सरूवप्प
रूवग नाम
दस मुद्देसो ।
॥ १०१ ॥

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