Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सुदंसणाचरियम्मि
॥ १०४ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रयणत्तय
ठिए नरवर ! परलोगहियं करिज्ज लहुं ॥ ८१४|| एवं सोऊण निवो सुण्णो वुण्णो विवण्णलायण्णो । अप्पमहण्णंमण्णो विसायविच्छायकायरुई ||८१५॥ अंसुजलाविलनयणो सोयानल म्हफुरियसेयभरो । लग्गो खणेण विलिडं अपक्ककुंभुब जल- स्सरूवप्पभरिओ ||८१६ ॥ भवभयकंपंततणू अत्थाणठिओ समुट्ठि सहसा । तं चैव सयंबुद्धं कयंजली सरणमणुपत्तो ॥ ८१७॥ भणइ सयंबुद्ध ! कहं हो हिस्समहं जमित्तियं कालं । विसयकसायपरवसो पवत्तिओ पावकज्जेसु ॥ ८१८॥
किंच - चउरंगो जिणधम्मो न कओ चउरंगसरणमवि न कयं । चउरंगभवच्छेओ न कओ हा ! हारिओ जम्मो ॥ ८१९ ॥ इण्हि तु आउसे से अप्पतरे कहमहं करिस्सामि ? | मणयं पि परतहियं धीर ! सयंबुद्ध ! कहसु तुमं ॥ ८२०|| अह भणइ सयंबुद्धो सामिय! मा भाहि धरसु धीरतं । धण्णोऽसि तुमं इव्हि पि जस्स जाया मई एसा ॥ ८२१ ॥ बहुभवकथं पि | कम्मं जं खिवइ चरित्तमप्पकालं पि । चिरसंचिइंधणभरं खणेण निद्दहइ जह जलणो ॥ ८२२॥ एगदिवसं पि जीवो पवज्जमुवागओ अणण्णमणो । जइवि न पावइ मुक्खं अवस्सं वेमाणिओ होइ ||८२३|| अच्छउ ता एगदिणं अंतमुहुत्तं पि चारुचरणजुओ । खवइ असंखिजभवऽज्जियं पि जीवो बहुकम्मं ॥ ८२४ ॥ कइया वि दवचरणं विणा वि कस्सइ विशुद्धभावस्स । जायइ भावचरितं तस्स य एयारिसं विरियं ॥८२५|| सबजियाण वि कम्माइ खबइ एगो वि खवगसेढिगओ । जइ तेसिं कम्माणं तज्झाणे होइ संकंती ॥ ८२६|| सुइरं पि चरित्तविणा न दिंति नाणं च दंसणं च सिवं । वरचारित्तजुयाइं खणेण | ताई सिवफलाई ॥८२७॥ एएण विणा तेहिं असंखभवपाविएहि वि न मुक्खो । सो पुण चरणजुएहिं अट्ठभवभंतरे नियमा | ॥ ८२८ ॥ चरणस्स होइ भयणा दंसणनाणाण नूण लाभे वि । चारित्तसंभवे पुण नियमा इयराण संपत्ती ॥८२९|| ता देव !
For Private and Personal Use Only
रूवग नाम
दिसमुद्देसो ।
॥ १०४ ॥

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296