Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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तुमं धण्णो जस्सऽजवि अत्थि मासमित्ताऽऽऊ । तो निविग्धं सिग्धं परलोगहिए कुणसु जुत्तं ॥८३०॥ इय धीरविओ राया तुट्ठो पुत्तं ठवित्नु नियरजे । अट्ठाहियमहिमाओ कारावेऊण जिणभवने ॥८३१॥ संथारगपबज पवजिउं निम्ममो निरासंसो । निरहंकारो कुणइ चउबिहाऽऽहारपरिहारो ॥८३२॥ सिद्धाययणम्मि गओ सिद्धंतस्सवणजणियसंवेगो । पाओवगमपहाणं सुणमाणो पुवमुणिचरियं ॥८३३॥ समसत्तुमित्तचित्तो संसाराऽसारयं विभावंतो । अणसणसहिअंचरणं पालइ सो अमयसित्तुच ॥८३४॥ पंचनमोकारपरो मासंते पाविऊण पंचत्तं । ईसाणे उप्पण्णो ललियंगो नाम पवरसुरो ॥८३५॥ पुवभवचरियचरणप्पभावओ तत्थ दिवभोगाई। वरअच्छराहि सद्धिं भुंजतो गमइ बहुकालं ॥८३६॥ निण्णामियाइ जीवो अणसणविहिणा समाहिणा मरिउं । जाया ललियंगस्स उ सयंपभानामया देवी ॥८३७॥ तीइ समं विसयसुहं ललियंगो माणि तओ चविउं । उप्पण्णो अट्ठभवे तीइ समं नरसुरनिवासो ॥८३८॥ चरिमम्मि भवग्गहणे महाबलजिओ उ इत्थ भरहम्मि । नाभिमरुदेवीसुओ जाओ उसहु त्ति पढमजिणो ॥८३९॥ सो पुबसयसहस्सं सुदुक्करं पालिऊण चारित्तं । भवियाण य उवइसिउं संपत्तो सासयं ठाणं ॥८४०॥ निण्णामियाइ जीवो सो पुण होऊण इत्थ सेयंसो। चरिऊण पवरचरणं सिवमयलमणुत्तरं पत्तो ॥८४१॥ एवं महाबलनिवो आजम्मं अकयसुकयलेसो वि। चारित्तस्स पभावा सुगईए भायणं जाओ | ॥८४२।। ता नाऊण पयत्थे सद्दहिऊणं च तो ससत्तीए । चरणं चरिज जेणं अइरेणं लहइ सिवसुक्खं ॥८४३॥ णणु अण्णेहि तु पढम दंसणमुत्तं इहं तु किमु नाणं । भण्णइ तं पाहण्णा कारणभावाउ नाणस्स? ॥८४४॥ कारणकज्जविभागो दीवपगासाण जुगवजम्मे वि । जुगवुप्पण्णं पि तहा हेऊ नाणस्स सम्मत्तं ॥८४५॥ इय पुण पढियं पढमं नाणं चिय जेण कज
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