Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 223
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SALAMARCANCELCASCALAMALSSS लुढइ धरणीयलम्मि आहणइ निययअंगाई । पासट्ठियाण पालगजणाण संजणइ भयमतुलं ॥७३६ ॥ अह सा कुरुमइदेवी हरियंदकुमारसंजुया कह वि । लजंती पच्छण्णं पडियरइ तयं सुदीणमणा ॥७३७॥ एवं सो कुरुचंदो बहुपावो परमदुक्ख-दू अभिभूओ। निरयपडिरूवधियणं वेयंतो मरणमणुपत्तो ॥७३८॥ तो हरिचंदकुमारो पिउणो काऊण देहसकारं । बहुजण-16 उवरोहेणं उवविट्ठो कह वि रजम्मि ॥७३९॥ पिउमरणं सुमरंतो चिंतइ खलु अत्थि पुण्णपावफलं । ता दिट्ठपच्चओ हं न करिस्सं एरिसं पावं ॥७४०॥ तो गंधसमिद्धपुरं पालइ गंधारजणवयसमग्गंाणायपरो जत्तेणं मालागारुब आरामं ॥७४२॥ अह हरिचंदनिवेणं भणिओ एगो य खत्तियकुमारो । पयईइ धम्मसुद्धो सुबद्धिणामा नियवयंसो ॥७४२॥ सुणसि तुम जत्थ जया वयणं सद्धम्मसंगयं किंचि । तं तं मह साहिजसु एसुच्चिय तुज्झ वावारो ॥७४३॥ आम ति सो पवुत्तुं जं| सुणइ कहिंचि धम्मसंबद्धं । तं तं साहइ रण्णो सो वि हु सद्दहइ तं सवं ॥७४४॥ अण्णदिणे पुरवाहिं देवुजोयं च देवम-15 हिमं च । दटुं हरिचंदनिवो पुच्छइ भो मंति! किमिमं ति ॥७४५॥ सो जंपइ तं नाउं मुणिणो एगस्स केवलंणाणं। उप्पण्णं तो तियसा केवलमहिम इय कुणंति ॥७४६॥ तत्तो हरिचंदनिवो पमुइयचित्तो सुबुद्धिसंजुत्तो। वंदणवडियाइ गओकेवलनाणिस्स पासम्मि ॥७४७॥ भत्तीइ तयं णमिउं उवचिट्ठो समुचियम्मि ठाणम्मि । अह धम्मदेसणं कुणइ केवली तीइ परि|साए ॥७४८॥ भो भवा! एस जिओ अणाइनिहणो अणाइकम्मजुओ । बहुदुहदवसंतत्तो भमइ चिरं चउगइभवोहे ॥७४९॥ णाणाइतियं लहियं कहमवि आराहिलं च तं सम्मं । काऊणं कम्मखयं अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं ॥७५०॥ इत्थंतरम्मि राया अवगयतत्तो णमित्तु पुणवि गुरुं । सद्धासंवेगपरो विण्णवइ कयंजली एवं ॥७५१॥ परलोगो अत्थि धुवं ति ताव एवं SIASAASAASAASASLASES For Private and Personal Use Only

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