Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ ९५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तद्विवरणगाथा - जाणंतस्स वि आगमवभासो गीयंजइजण निसेवा । वावण्णकुंदंसणवज्जणा य मम्मत्तसहहणा ॥ ५४१ ॥ लिंगतियं सुरसूसा सुयस्त छुहियस्स जह घयपूरिच्छा । तहणुाणे जिणंगुरुवेयावच्चुज्जमो रम्मं ॥५४२ ॥ जिणंसिद्धपंडिमसुयेधम्मसंघ गुरु उज्झ साहु सम्मत्ते । विणओऽवण्णाऽऽसायणनासो तह भत्तिबहुमाणो ॥ ५४३ ॥ मेणवेयर्तणुमुद्धीओ दोसा संकाय कखवितिगिच्छा । परतित्थियप्पसंसा तेहि समं संथवो तह य ॥ ५४४ || पावयणी धम्मकही बाई नेमित्तिओ तवैस्सी य | विजी सिद्धो य कई अट्ठेव पभावगा भणिया ॥ ५४५॥ भूषणानि - पर्वयणथिज्जपभावणभत्ती को सॅलतित्थसेवा य । लक्षणानि – उवसमसंवेगो वि य निवेयऽणुकंपअस्थिकं ॥ ५४६ ॥ जयणा वंदेणनमणं दाणाऽणुष्याणभाससभासं । परतित्थदेवयाणं न करे तग्गहियपडिमाणं ॥ ५४७ ॥ रायगण बैल सुरक्कम गुरुं निग्गहवित्ती छच्च आगारा । भाषण मूलं दारं पट्ठ आहार भाणनिंही ॥ ५४८ ॥ अस्थि जिओ तह निचो कत्ता भुत्ताय पुण्णपावाणं । अस्थि सिंधं तदुवाओ णाणाई इय छठाणाई || ५४९ ॥ [ अन्यत्र लिङ्गचतुष्टयमुध्यते] सवत्थ उंचियकरणं गुणाणुराओ रेई य जिणवयणे । अगुणेसु य मैज्झत्थं सम्मद्दिट्ठिस्त लिंगाई || ५५० ॥ इय सत्तसट्ठिदंसणभेयविसुद्धं धरंति जे सम्मं । पाउन्भवंति तेसिं सचत्तो सबसुक्खाई ॥ ५५१ ॥ जणगो जणणी अत्थो बंधू सयणो सुभसंघाओ। काउं aण्ण समत्था जं सम्मत्तं दर्द चिणं ॥५५२|| ईसि सविसायलोयणआलोयणहिनमिरनिवचकं । चक्कितं पि हु सुलहं दुलहं सम्मत्तरयणं तु ॥ ५५३ ॥ चिंताणंतर समकालसंमिलंताऽणुकूलसयलत्थं । अमरत्तं पि हु लग्भइ १ गीतार्थयति जनसेवा । For Private and Personal Use Only रयणत्तय रसरूवप्प रूवग नाम दस मुद्दे सो | ।। ९५ ।।

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