Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirtm.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
5 तेण समं संचलिया बहुसीसा धम्मघोसआयरिआ । वरिसारत्ते पत्ते सत्थेण सम ठिआ रणे ॥६१६॥ सत्थियजणाण तुद्दे | संबलए ते तओ वणरिसिब । जाया कंदाऽऽहारा गिण्हंति न ताई तहवि मुणी ॥६१७॥ अह अण्णया धणेणं विचिंतियं
इत्थ दुक्खिओ को णु? । नायं मुणिणो दुहिया निरवज्जाऽऽहारभोइत्ति ॥६१८॥ तो तत्थ पंए गंतुं ते णमिय निमंतिउं गिहे | नेउं । पडिलाभिया घएणं तेण विसुद्धेण भावेण ॥६१९॥ कालेण मओ उत्तरकुरासु मिहुणत्तणेण सो होउं । सोहम्मे उववण्णो पलियाऽऽउसुरो महिड्डीओ ॥६२०॥ कालेण तओ चविउं अवरविदेहेसु इत्थ दीवम्मि । वक्खारगंधमायणणगस्स आसण्णवत्तिम्मि ॥६२१॥ विजयम्मि गंधिलावइणामम्मि सिरीइ सग्गसरिसम्मि । वेयड्डपबयवरे तियसाण वि कील| णट्ठाणे ॥६२२॥ गंधारजणवयम्मि रिद्धीसमिद्धं धराइ तिलयं व । गंधसमिद्धं नयरं समत्थि नयरंजियजणोहं ॥२३॥ सयबलरण्णो पुत्तो अइवलनामु त्ति अत्थि तत्थ निवो । सो मिहुणसुरो जाओ महाबलो नाम तस्स सुओ ॥२४॥ पियरम्मि उवरए सो संजाओ नरवई पगिट्ठबलो । सेविजंतो खयरेसरेहिं पालइ चिरं रजं ॥६२५॥ पंचविहविसयसुक्खं माणइ नियमाणसस्स इच्छाए । इंदियवसगो भक्खाऽभक्खाइ न किंचि चिंतंतो ॥६२६॥ पंचविहपमायपरो परिग्गहाऽऽरंभलालसो धणियं । कज्जमकज्जेसु सया वट्टइ सावज्जकज्जेसु ॥६२७॥ न पढइ नाणं न धरेइ दंसणं न मुणेइ चारित्तं । विसयकसायपरवसो न कुणइ धम्मस्स वत्ता वि॥६२८॥ तस्स य बालवयंसो अस्थि सयंबुद्धणामओ मंती । जिणवयणभावियमई सया वि हियकारओ रण्णो ॥६२९॥ अण्णो वि अत्थि मंती संभिण्णस्सोअणामओ सो उ । सयकालपुच्छणिज्जो
SACACANCARRAICRACTICAL
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296