Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir H AMALAMSALARSAMACHAR गिम्हम्मि । पडिओ विसमपएसे न तीरए उहिउं तत्तो ॥६७५॥ तत्थेव ठिओ स मओ तस्स य विगजंबुगाइजीवेहिं । खइए अवाणदेसे छिदं जायं कह वि एगं ॥६७६॥ पविसित्तु तेण काया आमिसगिद्धा ठिया तहिं चेव । सुक्के अवाणदेसे आयववत्तम्मि ते तुट्ठा ॥६७७॥ पत्ते वरिसारत्ते बुट्टे नवजलहरम्मि करिकायं । नइपूरेण तरंतं कमेण पत्तं समुद्दम्मि ॥६७८॥ | भिण्णे अवाणदेसे सयमवि छिद्दम्मि विहसिए तम्मि । ते तेण पहेण लहुं नीहरिया वायसा तत्तो ॥६७९॥ उड्डित्तु तओ|गंतुं दिसासु सबासु पारमलहंता । तत्तो पडिया गंतुं चिट्ठति पुणो पुणो तत्थ ॥६८०॥ अह करिकाए मगराइएहिं नीए अगाहनीरम्मि । ते निग्गइया काया बुड्डा सवे वि तत्थेव ॥६८१॥ इत्थोवणयं निसुणसु काया संसारिणो जिया नेया। जह करिकायपवेसो तेसिं तह मणुयभवजम्मो ॥६८२॥ जह तस्स मंसभोगो तह मूढजियाण विसयसंपत्ती । जह तम्मग्गनिरोहो तह तत्थ जियाण पडिबंधो॥६८३॥ जह पाउसजलखोहो जाणसु जीवाण तह मरणकालो । जह निग्गमो दियाणं परलोयगमो तह जियाणं ॥६८४|| जह ते काया बुड्डा अत्ताणा असरणा जलहिमज्झे । जीवा वि भवसमुद्दे बुड्डुति तहा अकयसुकया ॥६८५॥ जो पुण विउसो धीरो तुच्छमसारं ति मुत्तु विसयसुहं । तवसंजमेसु उज्जमइ सो न सोअइ मरणसमए ॥६८६॥ जो उ विसएसु गिद्धो उविक्खए मरणसमयमविसंको । सो दुहिओ चिय होइ अगहियपाहेयपहिउच ॥६८७॥ |ता मा तुमंपि तुच्छं इच्छंतो जंबुगुध सुक्खलवं । बहुदीहकालियाओ सुहाओ चुक्किहिसि सुणसु तहा॥६८८॥ एगाए अडवीए बहुमज्झट्ठियम्मि वणनिगुजम्मि । धणुवाणपरसुपाणी भममाणो वणयरो एगो ॥६८९॥ दगुण तत्थ हत्थिं वयंत्थम-18 द्विकानाम्-काकानाम् । २ तरुणम् । CROCOCCACASCLASALCALCANCERNORS For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296