Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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सुदंसणा- गगणपडणसंकाए । तह अइपयत्तकारी तुमं पि इय विप्पयारंतो ॥६६०॥ ता भो! वुड्डजणाणं कमेण पजतसमयपत्ताणं रयणत्तयचरियम्मि सोहइ सुद्धमणाणं परलोगहियं पि कर्जतं ॥६६॥ तो भणइ सयंवुद्धो करुणारससायरो पुणवि एवं । संभिण्णसोअस्स रूवष्प॥९९॥
निसुणसु धीनिहि ! सुदृत्तणं मुत्तुं ॥६६२॥ जुज्झम्मि संपलग्गे पहरणनियरेसु निवयमाणेसु । जह सुट्ट वउत्तेहि वि नहु दमि- रूवग नाम जंति गयतुरया ॥६६॥ तह वा गिहे पलित्ते गिहसबस्सम्मि डज्झमानम्मि । खणिउं महंतकूवं नहु सक्का सुनिउणेहिं पिदादसमुद्देसो।
॥६६४॥ अहवा वि नगररोहे विहिज्जमाणम्मि परबले पत्ते । न च इज्जइ चउरेहि वि कर्णिधणाईहि तं भरिउं ॥६६५॥ द्रजइ पुण इमाणि पुर्वि सुदीहदंसीहि हुंति विहियाणि । तो ताई तम्मि काले सकजजणगाई जायंति ॥६६६॥ तह परलो
| यस्स कए अणागयं जो न उजमइ जीवो । धणधण्णसयणगिहदेहमोहे वा मोहिओ अहियं ॥६६७॥ पाणेसु उक्कमंतेसु | मिजमाणेसु मम्मठाणेसु । सिढिलेसु बंधणेसु य देहे संजायमाणेसु ॥६६८॥ आउम्मि तुट्टमाणे पियमित्तकलत्तपुत्तवित्तोहे ।। पाणप्पिए वि विहिणा बला वि चाइजमाणम्मि ॥६६९॥ अच्छिण्णविसयवंच्छो मणोरहे नवनवे पकुवंतो । एयारिसम्मि जाए | हल्लोहलियम्मि अइविसमे ॥६७०॥ सो किह परलोयहियं काहिइ बहुदुक्खसोयसंतत्तो।मरणसमुग्घायगओ विस्सरियसमत्तकउत्तयो ॥६७१॥ तम्मि समयम्मिन खमो दाणं दाउं तवं पि तह तविउं । सीलं च समायरिउं भावेउं भावणाउ तहा ॥६७२॥ द्रअण्णं पि धम्मकजं मणवयणकायाण हीणवावारो। कह सो कुणउ वराओ परलोगहियं मणागं पि?॥६७३॥ अण्णं च विसयगिद्धा जीवा संसारसायरे घोरे । बुडुति करिकलेवरगिद्धा जलहिम्मि कायब ॥६७४॥ किर कोइ करी वुड्डो समुत्तरंतो नईइ
१शीने। २ काका इव ।
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॥ ९९॥
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