Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 206
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- Iपवणेण वि किह संपयं वयं निषिसा इहं जाया ? । इय निवपुढे सुमई भणेइ दियो बियाणाइ ॥४८॥ किंतु तप्पुण्णवि-पारयणत्तयचरियम्मि | सिट्ठलद्धिमुणिअंगलग्गपवणेणं । अवि जंतूण झिज्जति आमया विसवियारा य ॥४८४॥ एयं मे सुयपुर्व ति मंतिवुत्ते निवोस्स रूवष्प॥९३॥ भणइ सुहडा!। उवरिमभाए पिच्छह किंचणनिकिंचणं समणं ॥४८५॥ ते वि गवेसित्तु लहुं कहंति रण्णो जहा इहं देव||रूवग नाम पुप्फकरंडुज्जाणे सुरअसुरनरिंदनमियकमो ॥४८६॥ निम्मलकेवलकलिओ बहुसमणजुओ अणेगलद्धिनिही । अजेव समो- दसमुद्देसो। सरिओ ससिप्पहो नाम आयरिओ ॥४८७॥ रायाऽऽह तप्पभावं एवं संभावएमि जं इत्थ । जाओऽम्हि निविसोऽहं ता तप्पासम्मि गच्छामि ॥४८८॥ तो सो सपरीवारो गओ नमित्ता पुरो समुवविट्ठो। दुंदुहिउद्दामसरं तयणु मुणी कहइ इय8 धम्म ॥४८९॥ दुलहं लहिय नरभवं भविया ! भवियवयानिओगेणं । इहपरलोयहियकरं जहसत्तीए कुणह धम्मं ॥४९॥ 8/इय मुणिय जंपइ निवो परभवगामी घडेइ कह जीवो। जं पंचभूयमित्तं दीसइ नहु तदहियं किं पि? ॥४९१॥ भणइ गुरू | जडपणभूयसमहिओ जइ जिओ निव! न हुजा । तो सुहदुहाई को मुणइ ? को व अहयं ति उल्लवइ ? ॥४९२॥ । किंच-निसुयं दिलै जिंघियमासाइयपुट्ठचिंतियाइ मए । इय इगकत्तारकया इमे विगप्पा वि कह हुज्जा? ॥४९३॥ इच्चाइजुत्तिजुत्तं संसयरयहरणपवणपडिरूवं । गुरुणो वयणं सोउं बुद्धो राया इमं भणइ ॥४९४॥ इच्चरकालं मिच्छत्तविसमविस-10 घारिएण मुणिणाह ! । के के जिया न हणिया किं किं अलियं न मे भणियं?॥४९५॥ किं किं न परस्स धणं गहियं किं किं न मइलियं सीलं । किं किं अतुच्छमुच्छावसेण नवि मीलियं दविणं? ॥४९६॥ किं किं नहु निसिभुत्तं किं किं महुपिसिय-12 5 ॥९ ॥ माइ नहु असियं । किं बहुणा अस्थि जए तं पावं जं न मे विहिये ?॥४९७॥ इण्हि मिच्छत्तविसं पहुवयणाऽमयरसेण मह: BAAmannamon CAMEREOGRESENGALORER -2-56 For Private and Personal Use Only

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