Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 9
________________ ६ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ है- कर्मों का बन्धन। मूलत: कषाय चार ही हैं—क्रोध, मान, माया और लोभ।१५ ये कषायिक वृत्तियाँ अर्थात् माया-लोभ और क्रोध-मान क्रमश: राग तथा द्वेष की जननी हैं।१६ इसीलिए आगमों में क्रोध को क्षमा-शांति से, मान को मृदुता-नम्रता से, माया को ऋजुता-सरलता से और लोभ को तोष-संतोष से जीतने का मार्ग बताया गया है। १७ तीव्रता-मन्दता और स्थायित्व के आधार पर भी आगमों में इन्हें पुन: चार-चार भागों में विभाजित किया गया है- अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन।१८ अनन्तानुबन्धी कषाय अनन्त काल तक, अप्रत्याख्यानी कषाय का समय एक वर्ष, प्रत्याख्यानी कषाय का समय चार मास तथा संज्वलन कषाय का समय पन्द्रह दिन माना गया है। जैसे-जैसे कषायिक पर्ते खुलती जाती हैं, वैसे-वैसे अशान्ति, आकुलता एवं तज्जन्य तनावों की परतें स्वयं अनावरित होती जाती हैं। आज के वैज्ञानिक युग में विज्ञान के द्वारा जितना भी औद्योगिक विकास हुआ है, उसके अनियन्त्रित होने के कारण, मानव जीवन ही असन्तुलित हो गया है। औद्योगिक क्रान्ति के कारण भौतिक अभिवृद्धि तो हुई लेकिन साथ ही आवश्यकताएं भी असीमित हो गईं, जिससे लालसा, लोभ, तृष्णा भी बढ़ी और तनावों का विकास हुआ, क्योंकि इच्छाएं अनन्त हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा भी गया है- इच्छाएं आकाश के समान अनन्त हैं। १९ तृष्णा की उपस्थिति में शांति नहीं मिल सकती है। इच्छाएं-आकांक्षाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, जिससे नये-नये आविष्कार होते जा रहे हैं। किसी ने कहा भी हैआवश्यकता आविष्कार की जननी हैं (Necessity is the mother of Invention)। आवश्यकता और आविष्कार का क्रम निरन्तर चलता रहा, जिसका दुष्परिणाम विश्वयुद्ध के रूप में हमारे सामने आया। आज ऐसे-ऐसे युद्ध आयुधों जैसे—एटम बम, हाइड्रोजन बम, मेगाटन बम और डूम्स डे का अविष्कार हो चुका है, जो कुछ ही क्षणों में सम्पूर्ण विश्व को नष्ट कर दें। धन, सत्ता और यश की लिप्सा में मानव पागल हो रहा है। अत: सम्पूर्ण विश्व ही तनाव से ग्रसित है। जैसे-जैसे लाभ होता है, लोभ की वृत्ति बढ़ती है। उत्तराध्ययन सूत्र में भी कहा गया है- 'ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ बढ़ता जाता है। लाभ लोभ को बढ़ाने वाला है। दो मासा सोने से होने वाला कपिल का कार्य लोभवश करोड़ों से भी पूरा न हो सका।'२० दशवैकालिक के अनुसार- क्रोध से प्रीति का, मान से विनय का, माया से मित्रता का और लोभ से सभी सद्गुणों का नाश होता है।२१ तृष्णा, लोभ, लिप्सा, स्वार्थपरायणता तनावों के प्रमुख कारणों में से हैं। साध्वी कनकप्रभा के शब्दों में-"विनाश के विभिन्न उपकरणों के भार से लदा विश्व कराह रहा है एवं पेचीदा राजनैतिक स्थितियां उसे और भी उलझा रही हैं। सत्ता का व्यामोह, विस्तारवादी मनोवृत्ति और अस्मिता का पोषण, इनसे आक्रान्त होकर विश्वचेतना उस चौराहे पर खड़ी है, जिसकी कोई भी राह निरापद नहीं है। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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