Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ का परिणाम माना है। 16 पीटर्सन महोदय के चतुर्थ प्रतिवेदन से ज्ञात होता है कि रामचन्द्र बहुत उद्दण्ड थे। उन्हें जब ऋषि जयाम्न के समक्ष लाया गया, तब उन्होंने जैन विश्वास के अनुसार स्वयं को एक दृष्टि के साथ प्रस्तुत किया ।17 इस प्रकार उन्होंने स्वयं ही अपनी एक आँख नष्ट कर दी। प्रो. साण्डेसरा का विचार है कि उनकी आँख जन्म से या बाल्यावस्था में ही दैववशात् नष्ट हुई होगी। 18 यद्यपि स्वयं कवि ने अपने नेत्रनाश की घटना का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया तथापि उनके स्तोत्रों में भगवान् जिन से दृष्टिदान की जो प्रार्थना की गयी है, उसमें उनकी चक्षुक्षति के सूक्ष्म संकेत विद्यमान हैं। उदाहरणार्थ नेमिस्तव का अन्तिम पद्य प्रस्तुत है- रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य नेमे ! निधेहि निशितासिलताभिराम चन्द्रावदातमहटसं मयि देव ! दृष्टिम् । सद्यस्तमांसि विततान्यपि यान्तु नाशमुज्जृम्भतां सपदि शाश्वतिकः प्रकाशः ।। इसी प्रकार षोडशिका नाम से विख्यात सभी स्तोत्रों के अन्त में निम्नलिखित पद्य उपलब्ध होता है- स्वामिन्ननन्तफलकल्पतरोऽतिराम चन्द्रावदात चरिताञ्चितविश्वचक्र ! | शक्रस्तुतांहिसरसीरुह ! दुःस्वसार्थे देव ! प्रसीद करुणां कुरुदेहि दृष्टिम् । । यद्यपि इन पद्यों में कवि ने मुक्ति पथ पर अग्रसर होने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करने के लिए प्रार्थना की है परन्तु उसकी बारम्बार आवृत्ति अवश्य ही द्व्यर्थी प्रतीत होती है। व्यतिरेकद्वात्रिंशिका के 31वें पद्य "जगति पूर्वविधेर्विनियोगजं विधिनतान्ध्यगलत्तनुताssदिकम्" में उपलब्ध "विधिनतान्ध्य" और "गलत्तनुता" पदों से प्रतीत होता है कि अन्तिम अवस्था में रामचन्द्र दोनों नेत्रों से ज्योतिहीन हो गये थे । (ङ) अन्त रामचन्द्रसूरि का अन्तिम समय अत्यन्त दुःखद व्यतीत हुआ । कुमारपाल का भतीजा अजयपाल एक विशिष्ट कारणवश उनसे वैर मानता था । अतः सत्तारूढ़ होने पर उसने इस महान कवि का अन्त करवा दिया । प्रबन्धचिन्तामणि से ज्ञात होता है कि अजयपाल द्वारा जब प्रबन्धशतकर्ता रामचन्द्र को तप्त ताम्रपट्टिका पर बैठाया गया, तब उन्होंने एक श्लोक पढ़ा और दाँत से अपनी जिह्वा काटकर मृत्यु को प्राप्त किया। 19 यहाँ राजा के द्वेष का कारण नहीं स्पष्ट किया गया जबकि अन्य प्रबन्धों में इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। प्रबन्धकोश के अनुसार एक बार कुमारपाल ने हेमचन्द्रसूरि से परामर्श माँगा कि वह अपना उत्तरा कारी किसे बनाये। हेमचन्द्र ने अजयपाल का विरोध और प्रतापमल्ल का समर्थन किया । हेमचन्द्र के एक शिष्य बालचन्द्र ने अपने मित्र अजयपाल से बता दिया। अजयपाल हेमगच्छी रामचन्द्र आदि से द्वेष करने लगा और सत्तारूढ़ होने पर उन्हें तप्त लौहपट्टिका पर बैठा कर उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी। लगभग इसी प्रकार के विवरण जयसिंह के कुमारपालचरित और जिनमण्डनगणि-रचित कुमारपालप्रबन्ध में भी उपलब्ध हैं। 20 पुरातनप्रबन्धसंग्रह में यह घटना अन्य प्रकार से वर्णित है। हेमसूरि के रामचन्द्र और बालचन्द्र शिष्य थे। गुरु ने रामचन्द्र को सुशिष्य समझकर विशेष विद्या और मान दिया। इससे बालचन्द्र क्रुद्ध हो गया और अजयपाल से मिल गया। अजयपाल जब राजा बना, तब उसने Jain Education International 13 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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