Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ सन्दर्भ एवं भाषावी दृष्टि के साथ इसिभासियाइं के "अरहता... बुझ्तं" की। मूर्धन्य विद्वानों के बरा इसिभासियाइं उतना ही पुराना माना गया है जितना आगमों के चार ग्रन्थ -- आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन और दशवकालिक। तब फिर भाषा में इतना अन्तर क्यों ? इस दृष्टि से तो आचारांग का सही और प्राचीन पाठ होगा-- "सतं मे आउसंतेण भगवता एवमक्खातं" आउसंतेण शब्द में भी "ण" के स्थान पर प्राचीनतम प्राकृत भाषा अर्थात् अर्धमागधी में "न" कार ही होना चाहिए। इसके लिए प्राकृत विद्या 1990 में प्रकाशित मेरा लेख "अर्धमागधी भाषा में मध्यवर्ती दन्त्य नकार का "ण" या "न" देखें। Jain Education International For Private 55ersonal Use Only www.jainelibrary.org

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