Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 62
________________ परस्पर कितने भिन्न है ? इस बात को उदाहरण के माध्यम से समझाने की डॉ. भारिल्लजी की शैली द्रष्टव्य है -- जिस प्रकार दूध तो दूध है और पानी पानी, दूध कभी पानी नहीं हो सकता और न पानी दूध। दूध में पानी मिला देने से न तो दूध पानी हो जाता है और न पानी दूध, मिल जाने पर भी दूध दूध रहता है और पानी पानी । वस्तुतः वे मिलते ही नहीं, मात्र मिले दिखते हैं। उसी प्रकार जीव जीव है और देह देह, जीव कभी देह नहीं हो सकता है और न देह जीव। जीव और देह एक क्षेत्रावगाह हो जाने पर भी न तो जीव देह हो जाता है और न देह जीव, संयोगीदशा में भी जीव जीव रहता है और देह देह । वस्तुतः वे मिलते ही नहीं, मात्र मिले दिखते है।20 इस प्रकार के और भी अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं, किन्तु इस लघु समीक्षा लेख में देना सम्भव नहीं है। उपर्युक्त बिन्दुओं पर समग्र रूप से विचार करने पर प्रतीत होता है कि डॉ. भारिल्लजी ने "बारह भावना : एक अनुशीलन" नामक इस ग्रन्थ के माध्यम से न केवल बारह भावनागत अनेक प्रश्नों को उठाकर उनका समाधान प्रस्तुत किया है, अपितु सुबोध शैली में जिज्ञासुओं/मुमुक्षुओं/विद्वज्जनों के लिए बारह भावनाओं का सर्वांगीण शोधपरक विवेचन प्रस्तुत किया है, जो परम्परागत शैली को अक्षुण्ण रखते हुए अपने नव्य/भव्य रूप में सर्वथा स्वागतेय और अन्त में मैं डॉ. भारिल्लजी के इस विश्वास को दोहराना चाहूँगा कि इस अनुशीलन को जो भी व्यक्ति पवित्र हृदय से पढ़ेगा, मनन करेगा, चिन्तन करेगा, इसमें व्यक्त रहस्य को गहराई से अनुभव करेगा, उसकी भी जीवनधारा परिवर्तित हुए बिना नहीं रहेगी।21 धुवधाम की आराधना आराधना का सार है। - No 66 बारह भावना : एक अनुशीनन, पृ. 19 वही, वही, पृ. 8 तत्त्वार्थसूत्र, 9/7 द्रष्टव्य, कार्तिकेयानुप्रेक्षा आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार अनुप्रेक्षाओं का क्रम इस प्रकार है -- अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचिता, आसव, संवर, निर्जरा, धर्म, बोधि (दुर्लभ) - द्रष्टव्य, बारसाणुपेक्खा, गाथा 2 बारह भावना : एक अनुशीलन, पृ. 22 वही, पृ. 20 वही, पृ. 23-24 7. 8. 9. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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