Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 68
________________ सादा-जीवन, उच्च-विचार से अनुप्रेरित होना चाहिये जिसके लिए सात्विक भोजन आवश्यक है। बीच में यह धारणा बदल गयी थी और लोग ऐसा मानने लगे थे कि जो व्यक्ति मांसाहारी है वही दीर्घजीवी होता है। इस मान्यता का आज के आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से खण्डन कर दिया है। शाकाहार मात्र आहार नहीं बल्कि आत्मानुशासन और अपने इन्द्रियों पर अंकुश रखने की साधना है। जिससे मनुष्य अपने मन को अपने अधीन कर पाने में सक्षम होगा। आशा है इस पुस्तक से समाज के सभी वर्ग लाभान्वित होगें। इस श्रेष्ठ कृति के लिए लेखक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। पुस्तक -- चैतन्य चिंतन; लेखक -- श्री 108 मुनि विरागसागरजी म.; प्रकाशक -- श्री सुवालाल चतुरभुज अजमेरा, नागौर (राज.); संस्करण -- प्रथम, 19877 मूल्य -- पाँच रुपये (प्रथम), दस रुपये (द्वितीय) आकार -- डिमाई पेपर बैक चैतन्य चिंतन में मुनि श्री विरागसागरजी द्वारा 1984 तक की दैनिक डायरी के रूप में लिखे गये अन्तर विचार प्रस्तुत हैं। इन विचारों में सत् विचार, सुसंस्कार, अध्यात्म वृत्ति, अनुशासन, ज्ञानदान, प्रतिक्रमण, संगति आदि कुल 102 सविचार प्रथम भाग में है। द्वितीय भाग में क्रोध के प्रकार, सुसंस्कारित ज्ञान, अहिंसा, ज्ञान का आनन्द, कर्मफल सहित 103 विचार संकलित हैं। आशा है इस पुस्तिका से पाठकगण मुनि श्री के विचारों के सारभूत तत्त्व को समझ कर उससे लाभान्वित होगें। पुस्तिका उपयोगी है। पुस्तक -- कर्मबन्ध और उसकी प्रक्रियाः प्रस्तोता -- पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री प्रकाशक-- निज ज्ञान सागर शिक्षा कोष, सतना, म.प्र.; संस्करण -- द्वितीयः प्रकाशन वर्ष -- 1993 मूल्य -- तत्त्व जिज्ञासुओं के चिन्तन हेतुः आकार -- डिमाई पेपर बैक कर्मबन्ध और उसकी प्रक्रिया नामक पुस्तक में पं. जगन्मोहनलाल शास्त्रीजी ने जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त, कर्मबन्ध तथा उसकी प्रक्रिया आदि विषयों पर पाण्डित्यपूर्ण चिन्तन प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में आगमों का प्रमाण देकर विषय को स्पष्ट किया गया है तथा यह सिद्ध किया गया है कि स्थिति एवं अनुभाग बन्ध कषाय से होता है न कि मिथ्यात्व से। संक्षेप में कहा जाय तो पं. जी ने इस पुस्तक में ज्ञान का सागर भर दिया है और कर्मबन्ध के प्रश्न पर कषाय Jain Education International For 65 ate & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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