Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ जयोदय महाकाव्य दिगम्बर जैन आचार्य पू. श्री ज्ञानसागरजी महाराज की कृति है। जिसका अनुशीलन डॉ. कुमारी आराधना जैन ने पी. एच-डी. की उपाधि के लिए किया। इस ग्रन्थ में लेखिका ने जयोदय महाकाव्य का सर्वाङ्गीण विवेचन प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक बारह अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में जयोदय काव्य के प्रणेता महाकवि भूरामल जी (आचार्य ज्ञानसागरजी) का जीवन वृत्त एवं उनके द्वरा रचित कृतियों का विवरण है। दूसरा अध्याय महाकाव्य की कथावस्तु और उसके मूल स्रोत का विवेचन करता है। तीसरे अध्याय में कवि ने भाषा को काव्यात्मक बनाने के लिए जिस उक्ति-वक्रताओं का प्रयोग किया है उसका विश्लेषण है। चौथा, पाँचवा, कृठा, सातवां अध्याय क्रमशः मुहावरों, अलंकार-विन्यास, बिम्ब-योजना तथा लोकोक्तियों आदि का वर्णन करता है। आठवाँ अध्याय जयोदय में उपलब्ध रस, उसके स्वरूप, रस की उत्पत्ति आदि विषय पर प्रकाश डालता है। नौवाँ अध्याय वर्ण-विन्यास की वक्रता को उन्मीलित करता है। दसवा अध्याय जयोदय में वर्णित प्रमुख पात्रों के चरित्र को चित्रित करता है। ग्यारहवें अध्याय में तत्कालीन जीवन पद्धति पर दृष्टिपात किया गया है। बारहवाँ अध्याय उपसंहार के रूप है। इसके साथ ही तीन परिशिष्ट भी ह। ___ इस प्रकार इस रोचक महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन प्रस्तुत कर लेखिका ने एक श्रमसाध्य और नवीन कार्य किया है जो शोधार्थियों के लिए उपयोगी होगा। ग्रन्थ की भाषा सरल एवं सुबोध है। साज-सज्जा आकर्षक है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तक -- शाकाहार मानव सभ्यता की सुबहा लेखक -- डॉ. नेमीचन्द प्रकाशक -- पी.एस. जैन फाउण्डेशन, दिल्ली- 110054; संस्करण -- प्रथम 19937 मूल्य -- अध्ययन आकार--डिमाई पेपर बैक प्रस्तुत पुस्तक डॉ. नेमीचन्दजी के शाकाहार विषयक लेखों का संग्रह है। आज शाकाहार के विषय में काफी कुछ लिखा जा रहा है जिसकी आवश्यकता भी है। समाज में दिनों-दिन बढ़ती हिंसा, क्रूरता और मनुष्यों की तामसी वृत्ति के लिए काफी हद तक मांसाहार और खान-पान जिम्मेदार है। ऐसी अवस्था में शाकाहार पर बल देना अत्यन्त आवश्यक है। डॉ. नेमीचन्द ने इस पुस्तक में अपने स्वतन्त्र लेखों के माध्यम से शाकाहार के भूत-भविष्य, उससे होने वाले सामाजिक-शारीरिक लाभ और मांसाहार से उत्पन्न दुष्प्रभावों को स्पष्ट किया है। शाकाहार का प्रश्न सिर्फ आहार से ही नहीं जुड़ा है अपितु यह मानव के जीवन मूल्यों से जुड़ा है। प्राचीनकाल में धर्म ग्रन्थों और संतपुरुषों ने अपने उपदेशों में यह बताया था कि मनुष्य को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78