Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 66
________________ प्रस्तुत कृति में तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक सूत्र के आगमिक आधार-स्थलों का संकलन किया गया है। मुनि श्री दीपरत्नसागरजी ने यह महत्त्वपूर्ण कार्य किया, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र है। यद्यपि इसके पूर्व स्थानकवासी जैन परम्परा के आचार्यश्री आत्मारामजी ने "तत्त्वार्थसूत्र और जैनागम समन्वय" के रूप में तत्त्वार्थसूत्र के सभी सूत्रों के आगमिक आधार-स्थलों का निर्देश किया। वैसे प्रस्तुत कृति और उसमें जो स्थल सन्दर्मित हैं वे अधिकांश रूप में एक ही हैं। यद्यपि मुनि श्री दीपसागरजी ने कहीं-कहीं कुछ नये आगमिक आधार स्थल भी निर्देशित किये हैं और कहीं उसमें उल्लेखित सन्दर्भ छोड़ भी दिये गये हैं। उन्होंने आचार्य आत्मारामजी की कृति का कितना उपयोग किया है यह हमें ज्ञात नहीं है क्योंकि उन्होंने उस कृति का कहीं उल्लेख नहीं किया है। ज्ञातव्य है कि तत्त्वार्थसूत्र के सूत्रों के अनेक आगमिक आधार-स्थल नियुक्ति साहित्य में भी उपलब्ध हैं। जैसे -- तत्त्वार्थसत्र में आध्यात्मिक विकास की जिन 10 अवस्थाओं की चर्चा है। वे यथावत् रूप में मात्र आचारांगनियुक्ति में ही उपलब्ध होती है। यदि नियुक्ति साहित्य का उपयोग किया गया होता तो और भी कुछ नये तथ्य सामने आते। यद्यपि उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र के आधार के रूप में श्वेताम्बर परम्परा में वलभी वाचना के आगमों को प्रस्तुत किया जाता है और उसी प्रकार दिगम्बर परम्परा में कषाय पाहुड, षट्खण्डागम और कुन्दकुन्द के ग्रन्थों को उनकी रचना का आधार बताया जाता है। किन्तु उमास्वाति का तत्त्वार्थ सूत्र इन दोनों से पूर्ववर्ती है। यही कारण है कि उसके अनेक सूत्रों का आधार यथावत रूप में न तो श्वेताम्बर परम्परा के आगमों में है न दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में है। इस सन्दर्भ में विशेष चर्चा प्रो. सागरमल जैन के ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा में हुई है। इस कृति के अन्त में तत्त्वार्यसूत्र के मूल-पाठ में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में क्या अन्तर है यह दिखाया गया है। कृति तुलनात्मक अध्ययन करने वाले और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है। सम्भवतः गुजराती पाठकों के लिए इस प्रकार की यह प्रथम कृति है। कृति संग्रहणीय और पठनीय है। पस्तक --जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनशीलन लेखिका --डॉ. (क.) आराधना जैन "स्वतन्त्र"; प्रकाशक -- श्री दिगम्बर जैन मुनि संघ चातुर्मास सेवा समिति, गंज बसौदा, विदिशा (म.प्र.); संस्करण प्रथम -- 1994; मूल्य -- पचास रुपये आकार --डिमाई पेपर Ba Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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