Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 73
________________ संग्रहणीय है। पुस्तक -- देव, शास्त्र और गुरु लेखक -- डॉ. सुदर्शन लाल जैनः प्रकाशक -- अखिल भारतीय दिगम्बर जैन वित-परिषद, वाराणसी संस्करण -- प्रथमः प्रकाशन वर्ष -- 1994% मूल्य बीस रुपयाः आकार -- डिमाई पेपर बैक __ इस पुस्तक में डॉ. सुदर्शनलाल जैन ने देव, शास्त्र और गुरु के सही स्वरूप की जानकारी प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर दी है। ग्रन्थ में चार अध्याय हैं और चारों अध्यायों में विषय को शास्त्रीय प्रमाणों के माध्यम से ही स्पष्ट किया गया है। पुस्तक जैनाचार्यों और उनके द्वरा रचित प्रामाणिक रचनाओं के सम्बन्ध में सूचना देता है जिससे जैन शास्त्र परम्परा के स्वरूप का समझने में जैन तथा जैनेतर समाज को मदद मिलेगी। विद्वान् लेखक की यह कृति अनेक दृष्टि से उपयोगी है। पुस्तक का मुद्रण निर्दोष एवं साज-सज्जा आकर्षक है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। घुस्तक -- अनुसंधान; संकलनकार -- मुनि शीलचन्द्र विजय, हरिवल्लभ भायाणी प्रकाशक-- कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि, अहमदाबादः प्रकाशन वर्ष 1994; मूल्य बीस रुपये मात्रः आकार --डिमाई पेपर बैक प्रस्तत पत्रिका एक प्रयोजन को लेकर प्रकाशित हो रही है और यह प्रयोजन है अप्रकाशित जैन कृतियों को प्रकाश में लाना। इसी उद्देश्य से इसमें एक ओर जैन साहित्य और प्राकृत भाषा साहित्य से सम्बन्धित शोधपरक लेखों को लिया जाता है तो दूसरी ओर अप्रकाशित कृतियों को प्रकाशित किया जाता है। इस प्रकार प्रस्तुत अनुसंधान पत्रिका अपने नाम की यथार्थता प्रकट कर रही है। प्रस्तुत अंक में मुनि श्री शीलचन्द्रजी विजय के अतिरिक्त नवीनजी शाह, जयन्तकोठारी और हरिवल्लभ भयाणी के शोध लेखों का प्रकाशन हुआ है। साथ ही धर्मसूरि कृत बारगासा, सुभद्रा सती चतुष्पदिका जैसी कृतियों को प्रकाशित भी किया गया है। ___ यह एक प्रशंसनीय प्रयास है। इससे अप्रकाशित ऐतिहासिक जैन साहित्य को लोगों के सम्मुख लाया जा सकेगा जिससे न केवल जैन समाज अपितु सम्पूर्ण विद्या-प्रेमी लाभान्वित होंगे। गुजराती भाषा, लिपि देवनागरी का कलेवर और मुद्रण आकर्षक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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