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डॉ. कृष्णपाल त्रिपाठी
1. कुमारविहारशतक -- प्रस्तुत खण्डकाव्य कुमारपाल द्वारा निर्मित कुमारविहार की प्रशस्ति रूप में लिखित है। कुमारपाल ने सं. 1216 में जैनधर्म स्वीकार किया था। इस आधार पर इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं. 1216 से 1230 के मध्य माना जा सकता है। इस शतक में 116 पद्य हैं। प्रारम्भ के आठ पद्यों में पार्श्वनाथ की स्तुति और शेष में विहार के वैभव एवं महात्म्य का वर्णन किया गया है। 2. सुधाकलश -- सुभाषितकोष के रूप में विख्यात यह ग्रन्थ अभी उपलब्ध नहीं हुआ परन्तु नाट्यदर्पण में प्राप्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में निबद्ध है।1। 3. दोधक पंचशती -- पुरातनप्रबन्धसंग्रह से ज्ञात होता है कि अजयपाल ने जब रामचन्द्र को प्राणदण्ड स्वरूप अग्नि में बैठने का आदेश दिया, तब उन्होंने दोधकपंचशती की रचना की।२८ ग्रन्थ के शीर्षक से स्पष्ट है कि इसमें दोधक छन्द में पाँच सौ पद्य थे। अभी तक यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ। (घ) स्तोत्र -- रामचन्द्रसूरि-विरचित जो स्तोत्र उपलब्ध हुए हैं, उनका विवरण निम्नवत् है
1. अपहनतिद्वात्रिंशिका -- भगवान जिन की स्तुति से सम्बन्धित इस स्तोत्र में 32 पद्य हैं, इसके सभी पद्यों में वंशस्थ छन्द और अपहुति अलंकार विद्यमान हैं। 2. अर्थान्तरन्यासनविंशिका -- इस स्तोत्र में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति सम्बन्धी ३२ पद्य है, जिनमें वंशस्थ छन्द और अर्थान्तरन्यास अलंकार की छटा द्रष्टव्य है। 3. व्यतिरेकद्वात्रिंशिका -- यह स्तोत्र भी पार्श्वनाथ की स्तुति में लिखा गया है। इसके सभी बत्तीसों पद्यों में द्रुतविलम्बित छन्द और व्यतिरेकालंकार विद्यमान हैं। 4. मुनिसुव्रतदेवस्तव -- इसमें मुनि सुव्रतदेव के स्तुतिपरक 24 पद्य हैं, जो क्सन्ततिलका छन्द में आबद्ध हैं। 5. श्रीनेमिस्तव -- इसमें भगवान् नेमिनाथ की स्तुति से सम्बन्धित 24 पद्य है। 6. जिनस्तुतिवत्रिंशिका -- भगवान् जिन की स्तुति से सम्बन्धित इस स्तोत्र का अन्तिम पद्य मन्दाक्रान्ता में और शेष 31 पद्य क्सन्ततिलका छन्द में हैं। 7. दृष्टान्तगर्भस्तुतिद्वात्रिंशिका -- यह भगवान् जिन की स्तुति में दृष्टान्त अलंकार युक्त 32 पद्यों का स्तोत्र है। 8. श्रीयुगादिदेववात्रिंशिका -- इसमें भगवान् ऋषभदेव की स्तुति से सम्बन्धित 32 पद्य है। 9. शान्तिवात्रिंशिका -- शान्तिनाथ की स्तुति से सम्बन्धित और वंशस्थ कन्द में निबद्ध इस स्तोत्र के केवल 28 पथ ही उपलब्ध हुए है।
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