Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 22
________________ रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य 10. भक्त्यातिशयवात्रिंशिका -- पार्श्वनाथ की स्तुति में लिखे गये इस स्तोत्र के सभी बत्तीसों पद्यों में उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है। 11. प्रसादद्वात्रिंशिका -- यह स्तोत्र भी पार्श्वनाथ की स्तुति से सम्बन्धित है। इसमें सभी 32 पद्य मन्दाक्रान्ता छन्द में है। 12-28. पोडशिका साधारण जिनस्तव -- रामचन्द्रसूरि-विरचित 17 स्तोत्रों में सोलह-सोलह पद्य हैं, इसलिए उन्हें षोडशिका कहा जाता है। इनमें से प्रथम स्तोत्र में कई छन्द हैं, जबकि शेष में केवल अनुष्टुप् का प्रयोग हुआ है। सम्भवतः कवि ने इनकी रचना अन्तिम अवस्था में की थी, क्योंकि इन सभी स्तोत्रों के अन्त में वही एक श्लोक मिलता है, जिसमें दृष्टिदान की प्रार्थना की गयी है। 29. जिनस्तोत्र -- यह भगवान् जिन की उपासना से सम्बन्धित स्तोत्र है। 30. आदिदेवस्तव -- इसमें भगवान् ऋषभदेव की स्तुति से सम्बन्धित पद्य है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि रामचन्द्रसूरि विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनकी रचनाओं में उत्कृष्ट कोटि की साहित्यिकता के साथ-साथ ज्योतिष, सामुद्रिक, शकुन, स्वप्न, नीति, कामशास्त्र, तन्त्र-मन्त्र, न्याय, दर्शन, धर्मशास्त्र, नाट्यशास्त्र, और पौराणिक उपाख्यानों से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य विद्यमान हैं। वस्तुतः कवित्व और पाण्डित्य का ऐसा अनुपम संयोग अन्यत्र दुर्लभ है। अतः इस महाकवि की कृतियों का यथोचित परिशीलन नितान्त आवश्यक है। 20 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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