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डॉ. श्रीरंजनसूरिदेव
अहर्निश व्यस्त दिखाई पड़ते हैं । संघदासगणी ने इसी आधार पर कृष्ण के जीवन के केवल प्रौढ़काल का ही चित्र उपस्थित किया है। फिर भी कृष्ण के उत्तम व्यक्तित्व का महान उत्कर्ष यही है कि वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यशस्वी तथा प्रभावशाली सिद्ध हुए हैं । इसलिए कृष्णकथा के विकास और विस्तार की परम्परा में "महाभारत" और पुराणों के साथ-साथ "वसुदेवहिण्डी" का समानान्तर अध्ययन नितान्त आवश्यक है।
ज्ञातव्य है कि "क्सुदेवहिण्डी" की कृष्णकथा का व्यापक प्रभाव परवर्ती जैन कृष्णकथाओं पर भी विविध रूपों में पड़ा है, जिसकी विकास-सीमा अपभ्रंशकवि पुष्पदन्त ( 10वीं शती) के महापुराण तक फैली हुई दिखाई पड़ती है।
पी. एन. सिन्हा कालोनी, भिखनापहाड़ी, पटना-6.
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