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रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
जरासन्ध के वध के बाद नवम वासुदेव श्रीकृष्ण का राज्याभिषेक वर्णित है।41 3. नलविलास -- यह रामचन्द्रसूरि का सर्वोत्तम नाटक है। कवि ने कुछ रचनाओं में अपने गुरु हेमचन्द्राचार्य के "सिद्धहैम" व्याकरण का ससम्मान उल्लेख किया है। किन्तु नलविलास में उक्त ग्रन्थ का नामोल्लेख नहीं मिलता। इससे प्रतीत होता है कि नलविलास पूर्ववर्ती रचना है। सिद्धहैम का रचनाकाल 1135-1138 ई. माना जाता है।43 अतः नलविलास की रचना 1138 ई. के पूर्व अवश्य हो गयी होगी।
नलविलास सात अंकों का नाटक है। इसमें महाभारतीय नलोपाख्यान और वसदेवहिण्डी प्रभृति जैनस्रोतों से ग्रहीत नल-दमयन्ती की प्रणयकथा वर्णित है। प्रथम अंक में नल को कापालिक-लम्बोदर द्वारा दमयन्ती के चित्रपट की प्राप्ति और द्वितीय अंक में दमयन्ती को अनुकूल बनाने के प्रयासों का वर्णन हुआ है। तृतीय अंक में नायक-नायिका का मिलन और चतुर्थ अंक में दमयन्ती द्वारा नल का वरण होता है। पंचम अंक में कापालिक-षड़यन्त्रों के कारण नल अपने भाई कूबर के हाथों चूत में सर्वस्व हारकर देशान्तरगमन करता है और मार्ग में वनभूमिसुप्ता दमयन्ती को त्यागकर अयोध्या चला जाता है। षष्ठ अंक के गांक में विदर्भागत भरतों द्वारा प्रस्तुत नलान्वेषण नाटक में दमयन्ती के प्रतिबिम्ब को देखने से नल को विश्वास हो जाता है कि दमयन्ती की जीवनलीला समाप्त हो गयी। सप्तम अंक में दमयन्ती स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए नल विकृत रूप में विदर्भ पहुँचता है। वहाँ कापालिक बरा नल का मरण-प्रवाद सुनकर दमयन्ती चितारोहण करना चाहती है किन्तु अपने पूर्वस्प में प्रकट होकर नल उसकी रक्षा करता है।
नलविलास की कथावस्तु अत्यन्त रोचक एवं अभिनयानुकूल है। अर्थप्रकृतियों, अवस्थाओं और सन्धियों की योजना में कवि का नाट्य-नैपुण्य स्पष्टतः परिलक्षित होता है। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह नाटक विलक्षण है। इसमें नायक को धीरोदात्त रूप में न रखकर धीरललित स्प में चित्रित किया गया है। रस निष्पत्ति की दृष्टि से नाटक अत्यन्त समृद्ध है। इसमें शृंगार को अंगीरस के रूप में और अन्य रसों को अंग रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसकी भाषा प्रौढ़ एवं प्रांजल है। वैदर्भीरीति में लिखित यह नाटक गुण, अलंकार, छन्दादि के समुचित प्रयोग से पूर्णतः सुसज्जित है। 4. रघविलास -- यह नलविलास से परवर्ती और आठ अंकों का नाटक है। इसकी अधिकांश घटनाये जैन-रामायण पर आधारित है। प्रथम अंक में श्रीराम का वनगमन और द्वितीय अंक में सीता-ह ग का वर्णन है। तृतीय अंक में दुःखी राम के पास एक विद्याधर आता है और उनसे मायामुग्रीव का क्य कर वास्तविक सुग्रीव की रक्षा करने का अनुरोध करता है। चतुर्य अंक में रावण, सीता को आकृष्ट करने का असफल प्रयास करता है। पंचम अंक में विभीषण का राम की शरण में आने और चन्द्रराशि का रामदूत रूप में लंकागमन की घटनायें वर्णित है। षष्ठ अंक में इन्द्रजित् और कुंभकर्ण के बन्दी बनाये जाने पर क्रुद्ध रावण शक्ति प्रहार से लक्ष्मण को मूच्छित कर देता है। सप्तम अंक में मन्दोदरी आदि रावण को समझाती हैं। अष्टम अंक में
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