Book Title: Sramana 1993 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ अशोक के अभिलेखों में अनेकान्तवादी चिन्तन : एक समीक्षा सन्दर्भ ___ 1. "अठ वषा भिषित षा देवानांपियष पियदषिने लाजिने कलिग्या विजिता" -- त्रयोदश __ अभिलेख ( अशोक के अभिलेख, सं.- राजबली पाण्डेय, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी, सं. 2022) 2. अशोक, पृ. 65-66 (लेखक - डी. आर. भण्डारकर, एस. चन्द एण्ड कम्पनी लि., नई दिल्ली, 1989) 3. "देवानं पियो पियदसि राजा सर्वत इछति सवे पासंडा वसेयु। सवे ते संयम च भावसुधिं च इछति । जनो तु उचावचछंदो उचावच रागो" -- सप्तम अभिलेख ___4. "सव पासंडा पि मे पूजिता विविधाय पूजाया" -- षष्ठ स्तम्भ अभिलेख 5. "बाम्हण समणानं साधु दानं" -- तृतीय अभिलेख ____6. "त मया त्रैदसवासाभिसितेन धममहामाता कता । ते सब पाषंडेसु व्यापता धामधिष्ठानाय" -- पंचम अभिलेख 7. "सारबढी अस सबपांसडानं सारबढ़ी तु बहुविधा" -- द्वादश अभिलेख 8. वही, 9. "आत्पपासंडपूजा व पर पासंडगरहा व नो भवे अप्रकरणम्हि लहुका व अस तम्हि तम्हि प्रकरणे। पूजेतया तु एवपर पासंडा तेन तेन प्रकरणेन। एवं करूं आत्मपासंडं च वढयति पासंडस च उपकरोति। तदंत्रथा करोतो आत्मपाषंड च छणति परपासंडस च पि अपकरोति। यो हि कोचि आत्पपासंडं पूजयति परपासंडं व गरहति सवं आत्पपासंडभतिया किंति आत्पपासंडं दीपयेम इति सो च पुत्र तथ करातो आत्पपासंड बाढतरं उपहनाति। -- वही 10. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग 2, पृ. 223 (लेखक डॉ. सागरमल जैन, राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर, 1982) __ 11. "सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वइं जे उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया" -- सूत्रकृतांग, 1/1/2/23 (प्रकाशक - श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान), 1982) __ 12. द्वादश अभिलेख __13. "सवपासंडा बहुसुता च असुकलाणागमा च असु" -- वही। ___14. "अयं च एतसफल य आत्पपासंडवढी च होति धंमस च दीपना" -- वही ___ 15. अशोक, पृ. 101 Jain Education International For Private 13ersonal Use Only www.jainelibrary.org

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