________________ पी-एच.डी. उपाधि प्राप्त 1. श्री जितेन्द्र बी. शाह, निदेशक, शारदाबहन चिमनभाई एजुकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद को द्वादशारनयचक्र का दार्शनिक अध्ययन विषय पर दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा पी-एच.डी. की उपाधि प्रदान की गयी है। आपने पार्श्वनाथ शोधपीठ के निदेशक प्रो. सागरमल जैन के निर्देशन में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। 2. श्री सुरेश सिसोदिया, शोधाधिकारी आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर को "जैनधर्म के प्रमुख सम्प्रदायों की दर्शन तथा आचार सम्बन्धी समानताओं एवं असमानताओं का तुलनात्मक अध्ययन" विषय पर मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की गई है। आपने अपना शोधप्रबन्ध डॉ. एस. आर. व्यास (विभागाध्यक्ष दर्शन विभाग) के निर्देशन में प्रस्तुत किया था। उन्होंने पार्श्वनाथ शोधपीठ में रहकर संस्थान के निदेशक प्रो. सागरमल जैन के सहयोग एवं मार्गदर्शन में यह शोधकार्य पूर्ण किया था। शारदाबहन चिमन माई एजुकेशनल रिसर्च सेन्टर अहमदाबाद -- शारदाबहन चिमनभाई एजुकेशनल रिसर्च सेन्टर ने डॉ. जितेन्द्र बी. शाह के / निदेशकत्व में अल्प समय में ही संतोषजनक प्रगति की है। इस संस्थान ने सर्वप्रथम भारत में जैन आगमों की गाथाओं को कम्प्यूटर में फीड करवाया। प्रदत्त सूचना के अनुसार लगभग 1 लाख गाथाएँ फीड की गई हैं, जिन्हें चार सौ विषयों में विभाजित किया गया है। इस प्रयास की उपलब्धि यह है कि अब जैन आगमों की गाथाओं को भारत की किसी भी लिपि में लिप्यान्तरित करके पढ़ा जा सकता है। साथ ही वांछित विषयों की गाथाओं को बिना किसी विशेष श्रम के एक स्थान पर संग्रहीत किया जा सकता है दूसरे शब्दों में आगमिक गाथाओं का विषयानुक्रम के आधार पर संकलन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त श्वे. आगमों की गाथाओं का परस्पर तथा दिगम्बर परम्परा के आगमों के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। यह सम्पूर्ण कार्य जैन विद्या के क्षेत्र में शोध कार्य करने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी है। जैन विद्या के अध्ययन के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के उपयोग के लिए यह संस्था निश्चय ही धन्यवाद की पात्र है, इस संस्था द्वारा जैनदर्शन और भारतीय संस्कृति के प्रमाणभूत इतिहास तैयार करने की बृहद योजना पर भी कार्य हो रहा है। इसमें भारत के प्रख्यात इतिहासविदों का सहयोग लिया जा रहा है। 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org