________________ कर देता है। उपाध्याय जी की भाषा रहस्य आदि ऐसी अनेक कृतियाँ जो सामान्यजनों को ज्ञात नहीं उनका भी प्रामाणिक विवरण इसमें दिया गया है। केवल एक निबन्ध को छोड़कर शेष सभी निबन्ध गुजराती भाषा में हैं। प्रस्तुति सुन्दर है। ग्रन्थ संग्रहणीय और पठनीय है। इसके लिए सम्पादक और प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं। भविष्य में यदि इन लेखों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जाय तो हिन्दी भाषी पाठकों को लाभ होगा। ग्रन्थ की साज-सज्जा आकर्षक है एवं मुद्रण निर्दोष है। "गाथा", वाचना-प्रमुख -- आचार्य तुलसी, प्रणयन - युवाचार्य महाप्रज्ञ, संपादन - साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा, प्रकाशक - जैन विश्व भारती संस्थान लाडनूं, (राजस्थान), प्रथम संस्करण, 1993, पृ.सं. 500, मूल्य 250/- मात्र / प्रस्तुत कृति वस्तुतः एक संग्रह ग्रन्थ है। इसमें जैनधर्म-दर्शन एवं आचार से सम्बन्धित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर आगम वचन संकलित किये गये हैं। सर्वप्रथम इसमें समता की जैन अवधारणा का प्रतिपादन है उसके बाद सम्यगदर्शन, सम्यगज्ञान एवं सम्यक्चारित्र से सम्बन्धित प्रमुख अंश आगमों से संकलित हैं। सम्यक्चारित्र के अन्तर्गत ही मुनिधर्म एवं गृहस्यधर्म के सन्दर्भो का संकलन भी है। पंचम अध्याय में ज्ञान एवं क्रिया के समन्वय सम्बन्धी विचारों का संकलन किया गया है। षष्ठम एवं सप्तम अध्याय में सृष्टिपाद एवं कालचक्र से सम्बन्धित विषयों का प्रस्तुतिकरण है। अष्टम अध्याय में सामाजिक व्यवस्था व नवम अध्याय में धर्मसंघ की व्यवस्था सम्बन्धी आगमिक सन्दर्भो को प्रस्तुत किया गया है। दशम तीर्थंकर परम्परा और महावीर तथा उनकी शिष्य संपदा से सम्बन्धित है। एकादश अध्याय में जैनशिक्षा विधि के विविध पक्षों को संकलित किया गया है। द्वादश अध्याय में धर्म, त्रयोदश में वीतराग साधना तथा चतुर्दश अध्याय में विश्वशान्ति व निःशस्त्रीकरण से सम्बन्धित आगमिक सन्दर्भ संकलित हैं। पंचदश व षोडश अध्याय क्रमशः आत्मवाद व कर्मसिद्धान्त से सम्बन्धित हैं। सप्तदश व अष्टादश में क्रमशः नयवाद व अनेकान्तवाद से सम्बन्धित आगमिक सन्दर्भ संकलित हैं। ग्रन्थ का द्वितीय खण्ड महावीर का जीवनवृत्त प्रस्तुत करता है इसमें उनका पारिवारिक विवरण, साधना और तीर्थ प्रवर्तन से सम्बन्धित आगमिक सन्दर्भ प्रस्तुत हैं। इसप्रकार सम्पूर्ण ग्रन्थ जैनधर्म व दर्शन सम्बन्धी आगमिक उद्धरण का एक सुव्यवस्थित व संक्षिप्त संकलन है। इसे हम जैनधर्म सूक्त कोष भी कह सकते हैं। आचार्य तुलसी का दिशा निर्देश व युवाचार्य महाप्रज्ञ की प्रज्ञा से निष्पन्न यह ग्रन्थ न केवल सामान्य अध्येताओं के लिए अपितु विद्वानों शोधकर्ताओं के लिए भी उपयोगी है क्योंकि यह जैनधर्म, दर्शन व आचार सम्बन्धी सभी पक्षों के आगमिक सन्दर्भो को एक ही स्थान पर सुलभ कर देता है। ग्रन्थ की एक कमी सबसे अधिक खलती है, वह यह कि इसमें संकलित वचनों के मूलस्रोतों के सन्दर्भ नहीं दिये गये है। यदि ये सन्दर्भ दिये Jain Education International For Private & 56 nal Use Only www.jainelibrary.org