________________ जैन जगत् लावा, गरदारगढ़, 7 नवम्बर, 1993 को राजसमन्द के समीप स्थित लावा सरदारगढ़ में राजस्थान साहित्य अकादमी और अम्बागुरु शोध संस्थान के संयुक्त तत्त्वावधान में द्विदिवसीय आंचलिक के रचनाकार सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर राजस्थान के विधि न्यायमंत्री शांतिलाल चपलोत भी उपस्थित थे। इस सम्मेलन में राजग्थान शासन से यह अनुरोध किया गया कि वह स्थान-स्थान पर पुगतल्व संग्रहालयों को स्थापित कर राजस्थान में विखरी हुई असंख्य पाण्डुलिपियों को संग्रहीत और संरक्षित करने हेतु कोई कारगर कदम उठाये, ताकि भारतीय संस्कृति की यह अमूल्य निधि भावी-पीढ़ियों को भी उपलब्ध रह सके। मावली -- अम्बागुरु शोध संस्थान के तत्त्वावधान में एवं श्री सौभाग्यमनिजी कमद के सान्निध्य में 21 नवम्बर 1993 को आगम संगोप्ठी सम्पन्न हुई। इस संगोष्ठी में सर्वश्री डॉ. प्रेमसुमन जैन ने "भगवतीसत्र में पर्यावरण", डॉ. उदयचन्द्र जैन ने "भगवतीसत्र में भापावैज्ञानिकअध्ययन", डॉ. सुपमासिंघवी ने "भगवतीसूत्र में अनेकान्तवाद", डॉ. हुकुम चन्द्र जैन ने "भगवतीसूत्र में प्रतिपादित स्वप्नदर्शन", डॉ. सुरेश सिसोदिया ने "भगवतीसूत्र में तीर्थंकरों की आचार परम्परा में मान्यता भेद", कुमारी रचना जैन ने "भगवतीपत्र में वनस्पति विज्ञान : एक विश्लपण", डॉ. देवकोठारी ने "भगवतीमत्र का ऐतिहासिक अध्ययन" और श्री सौभाग्यमुनिजी ने भगवतीमत्र में परामनोवैज्ञानिक तत्व पर अपने शोध पत्रों का वाचन किया। इग संगोष्ठी की अध्यक्षता, डॉ. प्रेम गुगन जैन ने की। इस अवगर पर गावली श्री गंघ दाग विद्वानों को शाल आढाकर सम्मानित किया गया। मैसूर -- मैसूर विश्वविद्यालय में प्राकृत और जैन विद्या विभाग के अन्तर्गत दिनांक 16,17 नवम्बर, 1993 को डॉ. ए.एन. उपाध्ये स्मृति व्याख्यानमाला सम्पन्न हुई। इस वर्ष व्याख्यानमाला के व्याख्यानदाता थे-- प्रो. एम.डी. वसन्तराज। उन्होंने "प्राकृत साहित्य को कर्नाटक का अवदान" तथा "भद्रबाहु की कथायें और उनकी ऐतिहासिकता" विषय पर अपने व्याख्यान दिये। अहमदाबाद -- गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद के अन्तर्राष्ट्रीय जैन अध्ययन केन्द्र के अन्तर्गत डॉ. मधरोन के निर्देशन में जैन विद्या और आधुनिक परिप्रेक्ष्य विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें जैन विद्या में शोध की सम्भावनाओं और आधुनिक वैज्ञानिक संयन्त्रों जैसे कम्प्यूटर आदि के उपयोग पर गम्भीरता पूर्वक विचार-विमर्श किया गया। संगोष्ठी के मुख्यवक्ता प्रो. दलसुखभाई मालवणिया थे और संयोजन डॉ. मधुसेन ने किया। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only 59