Book Title: Sramana 1993 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 31
________________ हिन्दी जैनसाहित्य का विस्मृत बुन्देली कवि : देवीदास - डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन भारत की हृदयस्थली मध्यप्रदेश के सीमान्त पर एक ऐसा भी भूखण्ड है, जो रामायण एवं महाभारत-कालीन इतिहास के अनेक तथ्यों को अपने अस्तित्व में समाहित किये हुए है, किन्तु दुर्भाग्य से परवर्ती काल में वह उपेक्षित होता रहा है, यद्यपि चेदि, हैहय, कलचुरि, चन्देल, गाहड़वाल एवं बुन्देला-ठाकुरों ने वहाँ अनेक स्वाभिमानपूर्ण पराक्रम प्रदर्शित किये हैं और वे अपनी अतीतकालीन महिमामयी परम्पराओं को सुरक्षित रखने के लिए सर्वस्व न्यौछावर करते रहे हैं। इतिहास इसका साक्षी है। उस उपेक्षित महामहिम भूखण्ड को आज बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है। __ यही वह भूमि है, जहाँ वीर चम्पतराय बुन्देला ने अपनी तलवार के जौहर दिखाये थे। यही वह पुण्यभूमि है, जहाँ महाराज छत्रसाल ने परनामी-सम्प्रदाय के महान् साधक स्वामी प्राणनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर बुन्देलभूमि को श्रीसमृद्धि के साथ नया तेजस्वी जीवन दिया था। उन बुन्देलकेसरी छत्रसाल का साहित्यिक प्रेम हिन्दीसाहित्य का इतिहास कभी भुला नहीं सकता, जब उन्होंने अपनी ही धरती के लाल महाकवि भूषण की विदाई के समय उनकी पालकी में अपना कन्धा दिया था। यही वह भूमि है, जिसके राजाओं -- मधुकरशाह एवं इन्द्रजीत सिंह ने मुगलों के विरोध में एक ओर जहाँ अपनी तलवारों के चमत्कार दिखाये थे, वहीं दूसरी ओर, गोपी-कृष्ण की स्मृति में अपनी कलम का भी हृदयस्पर्शी चमत्कार दिखलाया था। एक हिन्दी-कवि के रूप में महाराज मधुकरशाह का यह पद "ओड़छी वृन्दावन सौ गाँव" आज भी बुन्देलखण्ड के झोपड़ों से महलों तक सर्वत्र सुनाई देता है। यही वह भूमि है, जहाँ गोस्वामी तुलसीदास के बाद महाकवि केशव, प्रवीणराय, बिहारी, बलभद्र, जगनिक, खड्गसेन कायस्थ, गोविन्द गोस्वामी, वीरबल, हरिराम, टोडरमल, आसकरण, रहीम खाँ, चतुर्भुज, कल्याण, बालकृष्ण, गदाधर, अमरेश प्रभृति ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से इसे महिमा-मण्डित किया था। वन्दनीय बुन्देलखण्ड प्रारम्भ से ही कलाकृतियों, मठों एवं मन्दिरों का प्रमुख केन्द्र रहा है। वहाँ शायद ही ऐसा कोई ग्राम, कसबा, नगर अथवा शहर हो, जहाँ हस्तलिखित पोथियों का भण्डार न हो। किन्तु, दुर्भाग्यवश शतियों से उनका आलोड़न-विलोड़न नहीं हो पाया है और हजारों-हजार पोथियाँ ( हस्तलिखित) काल-कवलित हो चुकी हैं और होती चली जा रही हैं। बन्देलखण्ड में ही प्राच्यकालीन ओरछा-स्टेट की राजधानी टीकमगढ (वर्तमान मध्यप्रदेश का एक जिला) में "दिगौड़ा" नामक एक ग्राम है, जहाँ महान् अध्यात्मी देवीदास नाम के कवि हुए हैं। कहा जाता है कि उन्होंने अनेक कृतियाँ लिखी थीं, किन्तु वे सब कहाँ हैं, इसका पता नहीं चलता। उनके कुछ पद तो इतने लोकप्रिय हैं कि वे आज भी घर-घर में गाये जाते हैं। उनकी कुछ लघु कृतियों का संग्रह एक गुटके के रूप में श्री ग.व. दि. जैन शोध-संस्थान, Jain Education International For Private & Peeg al Use Only www.jainelibrary.org

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