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डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन
जैसे इन्द्र नील मनि डारै पय भाजन मैं मनि को सुभाव पय नीलौ सौ लगत है। निश्च करि जद्यपि सु नीलमनि आए विर्षे उपचार करै व्यापी पय मैं पगत है।। जैसे सुद्ध ज्ञान की प्रवर्तना है ग्येय विषै व्यवहार नय के प्रमान सौं सगत है। सुद्ध नय न निहचै प्रमान ज्ञान एक ठान
वग्यौ चिदानन्द के समूह में दगत है। इसी प्रकार, नश्वर शरीर में चैतन्य आत्मा किस प्रकार निवास करती है, इस तथ्य को कवि ने अत्यन्त सुन्दर उदाहरणों के द्वारा प्रस्तुत किया है। यथा--
जैसे काठ माहि बसै पावक सुभाव लियै हाटक सुभाव लियै निवसैउ पल मैं। पहुप समूह मैं सुगन्ध को प्रमान जैसे तेल तिली के मझार बसै और फल मैं।। दही दूध विर्षे सु तूप आप स्वरूप बसै तीत रहौ पुरैन बीच जल मैं। जैसे चिदानन्द लियें आपनौ स्वरूप सदा भिन्न हैं निदान वैसे देह की गहल मैं।190
मानवीकरण -- कवि जब कवित्व के आवेश में जड़ एवं चेतन से तादात्म्य स्थापित कर लेता है, तब उसे सृष्टि के रहस्यमय तत्वों में भी नायक अथवा नायिका के दर्शन होने लगते हैं। कवि ने सुमति के वर्णन-प्रसंग में चेतन रूप नायक की पटरानी के रूप में उसे इस प्रकार प्रस्तुत किया है। यथा --
सा घिय सुंदरी सील सती सम शीतल संतनि के मन मानी। मंगल की करनी हरनी अपकीरति जासु जगत्र बखानी।। संतनि की परची न रधी परब्रहम स्वरूप लखावन स्यानी।
ज्ञान सुता वरनी गुनवंतिनी चेतनि नाइक की पटरानी ।। इसी प्रकार, मार्मिक शैली में प्रस्तुत कुबुद्धि का चित्रण भी द्रष्टव्य है --
दूतिय दुर्गति तै नियरी पर पोपिनि दोषिनी है दुषदाई। इंद्रिनि की पति राखत है प्रगटी विषयारस तैं गुरताई।
औगन मंडित निन्दित पंडित या दुर्बुद्धि कुनारि कहाई।११
प्रतीक-योजना -- कवि देवीदास आध्यात्मिक कवि थे। अध्यात्म स्वयं अपने में एक ऐसी विधा है, जिसकी व्याख्या करते समय प्रज्ञापुरुषों को भी भावाभिव्यक्ति में विकट समस्या का
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