________________ शोध-प्रबन्ध का सार-संक्षेप काशी के घाट : कलात्मक एवं सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ. हरिशंकर विश्व की प्राचीन नगरियों में काशी एक मात्र ऐसी नगरी है जहाँ की धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना और गतिविधियाँ प्राचीन काल से आज तक जीवन्त और गतिमान रूप में विद्यमान हैं। काशी की धार्मिक सांस्कृतिक निरन्तरता के मूल में यहाँ की धार्मिक-सांस्कृतिक समन्वय की प्रवत्ति रही है। काशी का यह समन्वयात्मक विराट स्वरूप गंगातट के घाटों पर मूर्तिमान रूप में आज भी विद्यमान है। काशी में विभिन्न संस्कृतियों के प्रभाव और परस्परता का मूल गंगा के तट पर इसकी स्थिति रही है। साथ ही पूर्व में कलकत्ता, पटना तथा उत्तर में इलाहाबाद, कानपुर, अयोध्या और कन्नौज जैसे नगरों के साथ इसका व्यापारिक सम्बन्ध भी महत्त्वपूर्ण रहा है। प्राक् मौर्यकाल से ई.पू. के मध्य घाटों पर यक्ष, नाग और प्रकृति पूजन की धार्मिक परम्परा रही है। सांस्कृतिक क्रिया-कलापों में जलोत्सव, मन्दिरोत्सव सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे। इस काल तक घाटों की धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियाँ राजघाट और समीपवर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित थी किन्तु ई. सन् के बाद घाटों का क्रमशः विकास हुआ और उनकी धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में वृद्धि हुई। असि से आदि केशव तक फैले 79 घाटों पर विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों एवं सामाजिक-धार्मिक परिवेशों से सम्बद्ध सांस्कृतिक जीवन के दर्शन होते हैं। घाटों एव घाटों के समीपवर्ती क्षेत्रों में सम्पूर्ण भारत के लोगों का निवास है, जहाँ उनकी समग्र सांस्कृतिक गतिविधियाँ सम्पन्न होती. हैं। काशी के घाटों पर धार्मिक-सांस्कृतिक दृष्टि से विभिन्नता में एकता की परम्परा का व्यावहारिक रूप देखने को मिलता है। घाटों पर विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियाँ अपना स्वतन्त्र अस्तित्व कायम रखते हुए काशी की परम्परागत रहन-सहन, भाषा-बोली, आचार-विचार, पर्व-महोत्सव में पूरी तरह घुली-मिली हैं। काशी में गंगा के उत्तरवाहिनी होने के कारण भी इसकी विशेष धार्मिक मान्यता रही है। काशी में गंगा के दर्शन, पूजन, स्पर्श, नाम उच्चारण, गंगा वायु एवं जल के सवन और गंगास्नान सभी को पुण्यदायी माना गया है। फलतः सम्पूर्ण भारत के राजाओं-महाराजाओं, साधु-सन्तों, सामान्य एवं याचकजनों ने काशी में गंगा तट के घाटों पर ही अपना निवास बनाया जिसके फलस्वरूप गंगा तट के घाटों पर सम्पूर्ण भारत के लोग और उनसे जुड़ी धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियाँ विकसित हुई। घाटों एवं घाटों के समीपवर्ती क्षेत्रों में आन्ध्र, कर्नाटक, तमिल, महाराष्ट्री, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी, भोजपुरी, बंगाली, पंजाबी, सिन्धी एवं नेपाली लोगों की बहुलता अलग-अलग घाटों पर द्रष्टव्य है। घाटों पर स्नानार्थियों के साथ ही तीर्थ यात्रियों, देश-विदेश के पर्यटकों, पण्डे-पुरोहितों, व्यापारियों, नाविकों, धोबियों, नाइयों, डोमों (हरिश्चन्द्र Jain Education International For Private & Personase Only www.jainelibrary.org