Book Title: Sramana 1993 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ काशी के घाट : कलात्मक एवं सांस्कृतिक अध्ययन एवं मणिकर्णिका घाटों पर) याचकों, कर्मकाण्डियों, तपस्वियों, तांत्रिकों, कलाकारों एवं कला साधकों, स्त्री-पुरुषों, बालक-बृद्धों आदि सभी की उपस्थिति देखी जा सकती है। घाटों पर भांग-बूटी छानने, दण्ड-बैठक लगाने, गदा-जोड़ी फेरने एवं नौका विहार जैसी दैनिक क्रियाओं के अतिरिक्त विभिन्न पर्यों एवं अवसरों पर आयोजित नौका दौड़, तैराकी, वाटर पोलो, मुक्केबाजी (मुक्की) गंगा में नौकाओं पर आयोजित नृत्य-संगीत, गायन-वादन, दीपावली एवं कार्तिक पूर्णिमा को होने वाला दीप प्रज्ज्वलन, नाग-नथैया (कालिय नागमर्दन) मेला, रामलीला, नृसिंह मेला, दुर्गापूजा, कालीपूजा, सरस्वतीपूजा, गणेशपूजा एवं विश्वकर्मापूजा के पश्चात् मूर्तियों के गंगा में विसर्जन जैसे अवसरों पर काशी और काशी के बाहर के लोगों की सामुहिक उपस्थिति होती है। प्रस्तुत प्रबन्ध में मत्स्यपुराण, लिंगपुराण, अग्निपुराण, वायुपुराण, स्कन्दपुराण के काशीखण्ड, ब्रह्मवैवर्तपुराण के काशी रहस्य तथा कृत्यकल्पतरु एवं त्रिस्थलीसेतु जैसे ग्रन्थों का अध्ययन किया गया है। उपर्युक्त पुराणों एवं ग्रन्थों के अतिरिक्त 14वीं से 17वीं शती ई. के मध्य के कई अन्य ग्रन्थों में घाटों का उल्लेख मिलता है, जिनका समुचित उपयोग किया गया है। साथ ही गहड़वाल एवं अन्य उपलब्ध लेखों, प्रकाशित विद्वानों के लेखों, पुस्तकों का भी पूरा उपयोग किया गया है। स्वयं मैंने घाटों का विस्तृत सर्वेक्षण किया है और उसके आधार पर घाटों के अतीत और वर्तमान के सांस्कृतिक और कलात्मक स्वरूप को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध छः अध्यायों में विभक्त है। प्रस्तावना से सम्बन्धित प्रथम अध्याय में काशी के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व की संक्षिप्त विवेचना के साथ ही घाटों का महत्त्व भी बताया गया है। पूर्व कार्यों की विवेचना भी की गयी है। दूसरे अध्याय में प्रारम्भ से लेकर 18वीं शती ई. तक के घाटों के ऐतिहासिक विकास को उनके धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया है। तीसरे अध्याय में वर्तमान (19वीं-20वीं शती ई. ) में काशी के घाटों की स्थिति एवं उनके धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व का विस्तार पूर्वक अध्ययन हुआ है। चौथे अध्याय में असि से आदिकेशव तक के घाटों पर स्थित विभिन्न स्थापत्य शैलियों वाले मन्दिरों का विवेचन किया गया है। पांचवा अध्याय घाटों पर स्थित मन्दिरों की मूर्तियों से सम्बन्धित है। इस अध्याय में मन्दिरों में प्रतिष्ठित शिव (लिंग रूप) विष्णु, सूर्य (मुख्यतः आदित्य रूप), शक्ति, गणेश, ब्रह्मा, हनुमान तथा गंगा एवं नवग्रह की मूर्तियों के साथ ही जैन मन्दिरों की मूर्तियों का भी अध्ययन किया गया है। विभिन्न घाटों पर बिखरी (7वीं से 18वीं शती ई. की) उमा महेश्वर, दक्षिणा मूर्ति, कल्याण सुन्दर, गजान्तक, भैरव, विष्णु, शेषशायी विष्णु, बलराम-रेवती, कार्तिकेय, पार्वती, महिषमर्दिनी, गजलक्ष्मी आदि प्राचीन देव मूर्तियों का भी इस अध्याय में निरुपण हुआ है। अन्तिम अध्याय उपसंहार के रूप में है जिसमें सम्पूर्ण अध्ययन के निष्कर्षों को क्रमबद्ध रूप में संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही आधुनिक बदलाव की परिस्थितियों एवं मनोवृत्ति की पृष्ठभूमि में घाटों के पारम्परिक स्वरूप की रक्षा के लिए कुछ सुझावों का भी संकेत किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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