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शोध-प्रबन्ध का सार-संक्षेप त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र : एक कलापरक अध्ययन
- डॉ. शुभा पाठक
ब्राह्मण और जैन दोनों धर्मों में प्रचुर संख्या में पुराणों की रचना की गयी। पांचवीं से दसवीं शती ई. के मध्य जैनधर्म की दोनों ही परम्पराओं में विभिन्न पुराणों एवं चरित ग्रन्थों की रचना हुई। इनमें पउमचरिय (विमलसूरिकृत, 473ई.), वसुदेवहिण्डी (संघदासकृत, लगभग 7वीं शती ई.), कहावली (भद्रेश्वरकृत, लगभग 8वीं शती ई. ), पद्मपुराण (रविष्णकृत, 678ई.), हरिवंशपुराण (जिनसेनकृत, 783ई.), संस्कृत महापुराण (जिनसेन और गुणभद्रकृत, 9वीं-10वीं शती ई. ), अपभ्रंश महापुराण (पुष्पदन्तकृत, 690ई. ), विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। इन ग्रन्थों में प्राचीन भारतीय परम्परा के जन-चरित्रों (भरत, राम, कृष्ण, बलराम आदि) के साथ ही जैन देवकुल के अन्य शलाकापुरुषों के चरित्र वर्णित हैं। जिनकी कुल संख्या 63 रही है। श्वेताम्बर परम्परा के चरित ग्रन्थों में हेमचन्द्र द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (12वीं शती ई. का उत्तरार्द्ध) सर्वाधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।
पूर्वगामी विद्वानों ने जैन पुराणों के आधार पर सांस्कृतिक अध्ययन से सम्बद्ध कई.कार्य किये हैं जिनमें जे.सी.सिकदर (भगवतीसूत्र), गोकुलचन्द जैन ( यशस्तिलक 1967 ), मंजु शर्मा (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, अप्रकाशित), प्रेमचन्द्र जैन (हरिवंशपुराण), नेमिचन्द्र शास्त्री (आदिपुराण), झिनकू यादव (समराइच्चकहा), रमेशचन्द्र शर्मा (रायपसेणिय ) मुख्य हैं। किन्तु अभी तक कलापरक अध्ययन की दृष्टि से चरित अथवा पुराण साहित्य अछूता रहा है। साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब होता है और कला जीवन और समाज की स्वाभाविक अभिव्यक्ति। यही कारण है कि साहित्यिक ग्रन्थों में समाज के अन्य सांस्कृतिक पक्षों के साथ ही कलापरक सामग्री का भी समावेश होता है। पुराण या चरित ग्रन्थों में वर्णित सामग्री अन्य पक्षों के साथ ही मूर्तिकला, लक्षण और स्थापत्य की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। इन ग्रन्थों में देवमूर्ति निर्माण एवं उनके स्वरूपों की स्पष्ट आधारभूत सामग्री मिलती है जिनके आधार पर ही 24 तीर्थंकरों एवं जैन देवकुल के अन्य देवों के विस्तृत लक्षण नियत हुए और उन्हें मूर्त अभिव्यक्ति मिली।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के कर्ता हेमचन्द्र गुजरात के एक लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् और श्वेताम्बर परम्परा के जैनाचार्य थे। इस ग्रन्थ की रचना उन्होंने अपने आश्रयदाता कुमार पाल चौलुक्य के अनुरोध पर जन-कल्याण के उद्देश्य से 12वीं शती ई. के उत्तरार्द्ध में की थी। प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन परम्परा के 63 शलाकापुरुषों ( श्रेष्ठ जनों) का जीवन चरित विस्तारपूर्वक वर्णित है। 63 शलाकापुरुषों में 24 तीर्थंकरों या जिनों के अतिरिक्त 12 चक्रवर्तियों, 9 बलदेवों, 9 वासुदेवों तथा 9 प्रतिवासुदेवों का उल्लेख हुआ है। For Private & Perso46 Use Only
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