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डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह
वर्षावास के बाद हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु के आठ महीनों में श्रमणों को एक स्थान पर न रहने का विधान किया गया है। श्रमणों को नगर के अन्दर और बाहर एक-एक मास तक तथा श्रमणियों को दो-दो माह तक रहने का विधान किया गया है। श्रमणों को सोलह प्रकार के स्थानों में वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य समय में एक मास से अधिक स्कने का निषेध किया गया है। बृहत्कल्पभाष्य में विवरण सहित इन स्थानों के नाम गिनाये गये हैं --
1. ग्राम -- जहाँ राज्य की ओर से अट्ठारह प्रकार के कर लिये जाते हों। 2. नगर -- जहाँ अट्ठारह प्रकार के करों में से एक भी प्रकार का कर न
लिया जाता हो। 3. खेट -- जिसके चारों ओर मिट्टी की दीवाल हो। 4. कर्वट -- जहाँ कम लोग रहते हों। 5. मडम्ब -- जहाँ ढाई कोस तक कोई गाँव न हो। 6. पत्तन -- जहाँ सब वस्तएँ उपलब्ध हों। 7. आकार -- जहाँ धातु की खाने हों। 8. द्रोणमुख -- जहाँ जल और स्थल को मिलाने वाला मार्ग हो। 9. निगम -- जहाँ व्यापारियों की वस्ती हो। 10. राजधानी -- जहाँ राजा के रहने के महल आदि हों। 11. आश्रम -- जहाँ तपस्वी आदि रहते हों। 12. निवेश -- जहाँ सार्थवाह अपने माल उतारते हों। 13. सम्बाध -- जहाँ कृषक रहते हों। 14. घोष -- जहाँ गाय आदि चराने वाले रहते हों। 15. अंशिका -- गाँव का अर्ध, तृतीय अथवा चतुर्थ भाग। 16. पुभेदन -- जहाँ दूर-दूर से पर गाँव के व्यापारी अपनी चीजें बेचने आते हों।
इसी के साथ ही साथ श्रमण-श्रमणियों से सम्बन्धित आहार, उपाश्रय दिनचर्या, बिहार, मृतक संस्कार, पर्व एवं उत्सव यथा -- रथयात्रा, संखडि आदि का वर्णन किया गया है। अन्त में विभिन्न देवताओं और लोक-प्रचलित महों का वर्णन किया गया है। बृहत्कल्पभाष्य में इन्द्रमह, यक्षमह, पर्वतमह, नदीमह और तडागमह का उल्लेख है।
षष्ठ अध्याय में राजनीतिक जीवन का वर्णन किया गया है। यद्यपि प्रस्तुत ग्रन्थ राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित ग्रन्थ नहीं है, और न ही इसका यह उद्देश्य है फिर भी आलोच्य ग्रन्थ में राज्य एवं शासन से सम्बन्धित अनेक विषयों की चर्चा हुई है। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर तत्कालीन शासन व्यवस्था के ऊपर कुछ प्रकाश पड़ता है। बृहत्कल्पभाष्य में राजा के कर्तव्य, राज्याभिषेक, उत्तराधिकार, राज्य के चार प्रकार यथा -- अणराय (अराजक), जुक्सय (यौवराज्य), वेरज्ज (वैराज्य) और देरज्ज (द्वैराज्य) बतलाये गये हैं। उस समय कठोर दण्ड की व्यवस्था थी। राजा की आज्ञा का उल्लंघन करने पर मृत्युदण्ड तक दिया जाता था। अनियमितता होने पर राजा अपने मंत्री तक को मृत्युदण्ड दे देता था। किसी युवराज की For Private & Pedal Use Only
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