Book Title: Sramana 1993 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 36
________________ हिन्दी जैनसाहित्य का विस्मृत बुन्देली कवि : देवीदास पहुप सुगन्धी गुन तप-पत्र छ्यौ है।। मुक्ति फल दाई जाकै दया छाह छाई भए भव तप ताई भव्य जाइ ठोर लगयो है। गयो अघ तेज भयो सुगुन प्रकाश ऐसी चरण सुवृक्ष ताहि देवीदास नयो है।।६ कवि ने व्यापार के रूपक द्वारा शरीर और आत्मा की स्थिति को स्पष्ट करते हए आत्मा को सम्बोधित किया है और कहा है कि उसे भेद-ज्ञान प्राप्त कर लेने की आवश्यकता है, बिना भेद-ज्ञान के वह आत्मा इसी प्रकार अनन्त काल तक आवागमन के चक्कर में फंसी रहेगी। कवि आत्मा को "हंस" शब्द से सम्बोधित करते हुए कहते हैं : अरे हँसराई ऐसी कहा तोहि सूझि परी पुँजी लै पराई बंजू कीनौं महा षोटो है। षोटो वंजु किए तौको कैसे के प्रसिद्धि होइ। नफा मूरि थे जहाँसिवाहि ब्याजु चौटो है।। बेहुरे सौ बँध्यौ पराधीन हो जगत्रमाहि। देह कोठरी मैं तं अनादि को अगौटो है। मेरी कही मानु खोजु आपनी प्रताप आप। तेरी एक समै की कमाई को न टोटो है। अनन्वय :- कवि ने ज्ञान और ज्ञानी के वर्णन-प्रसंग में अनन्वय अलंकार के द्वारा यह स्पष्ट किया है कि संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जो ज्ञान एवं ज्ञानी की समता कर सकें, क्योंकि दोनों ही, व्यक्ति की संयम-साधना, त्याग-तपस्या एवं तज्जन्य अनुभूति से सम्बद्ध हैं। इसी तथ्य का निरूपण उन्होंने इस प्रकार किया है -- ज्ञानी सौ न और पैन और सौ सुज्ञानवंत ज्ञानवंत कै क्रियां विचित्र एक जानकी। जानी एक ठौर को पिछानी है सु और कौ सु और की अजानी है न जानै एक ठान की।। ठान-ठान और पैन और ठान-ठान कोई रीति है पिछानिवे की वाही के प्रमान की। ज्ञानी है सुज्ञानी है न ज्ञानी और दूजौ कोई। और के पिछानी मैं निसानी एक ज्ञान की। कवि ने वर्ण्य-विषयों को और अधिक स्पष्ट करने के लिए उदाहरण अलंकार की योजना की है। कवि ने एक-से-एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। उन्हें पढ़कर पाठक मन्त्रमुग्ध-सा रह जाता है। उन्होंने व्यवहारनय और निश्चयनय जैसे दार्शनिक विषयों को भी अपने उदाहरणों द्वारा सरल और सरस बना दिया है। यथा : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 54

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