Book Title: Sramana 1993 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 16
________________ हिन्दू एवं जैनपरम्परा में समाधिमरण : एक समीक्षा - डॉ. अरुण प्रताप सिंह - समाधिमरण जैनधर्म का एक पारिभाषिक शब्द है जिसका तात्पर्य है क्रमशः आहार- पानी आदि त्यागकर शान्तिपूर्वक अपने जीवन का अन्तिमकाल व्यतीत करना। ऐसा साधक समभाव में स्थित और मृत्यु की आकांक्षा से भी रहित होता है • यही इस व्रत की प्रमुख विशिष्टता है । सामान्यजन समाधिमरण से तात्पर्य आत्महत्या से लेते हैं जो पूर्णतया भ्रममूलक है। आत्महत्या में मृत्यु की आकांक्षा ही सर्वोत्कृष्ट होती है, जबकि समाधिमरण मृत्यु की आकांक्षा से रहित होता है । आत्महत्या सद्यः जात उद्वेग का परिणाम है जबकि समाधिमरण सुविचारित अध्यवसाय का । समाधिमरण के प्रश्न पर हिन्दूधर्म और जैनधर्म के तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता. है। जैनधर्म में समाधिमरण की जो विकसित अवधारणा है उसका हिन्दू धर्म में नितान्त अभाव है । समाधिमरण जैनधर्म की एक सुविचारित परम्परा है, जिसके उल्लेख हमें न केवल जैनसाहित्यिक स्रोतों से अपितु अभिलेखीय साक्ष्यों से भी प्राप्त होते हैं। हिन्दूधर्म में साधना में रत साधकों एवं तपस्वियों के उल्लेख तो बहुशः प्राप्त होते हैं, परन्तु मृत्यु की आकांक्षा से रहित जीवन के अन्तिम क्षणों को व्यतीत करने के उदाहरण विरल ही हैं। यद्यपि धार्मिक विश्वासों के अनुरूप देहत्याग करने के हमें अनेक प्रकरण उसमें प्राप्त होते हैं। हिन्दूधर्म में धार्मिक देहत्याग हिन्दू परम्परा में समाधिमरण के नहीं, अपितु धर्मानुशासित देहत्याग के उल्लेख प्राप्त होते हैं। कालान्तर के हिन्दू धर्माचार्यों ने स्वर्ग (जिसे भ्रमवश वे मोक्ष कहते थे) का सीधा एवं सरल रास्ता धार्मिक विधि से देहत्याग बताया । इस परम्परा के विकास में धर्मसूत्रों एवं पुराणों ने विशेष योगदान दिया । पद्मपुराण (सृष्टि. 60/65 ) के अनुसार जाने या अनजाने कोई गंगा में मरता है, तो वह मरने पर स्वर्ग एवं मोक्ष पाता है । इसी प्रकार स्कन्दपुराण के अनुसार जो पवित्र स्थल में किसी प्रकार प्राण त्याग करता है, उसे आत्महत्या का पाप नहीं लगता और वह वाँछित फल पाता है । कूर्मपुराण ने चार प्रकार की आत्महत्याओं का उल्लेख किया है और यह आश्वासन दिया है कि इससे सहस्रों वर्षों तक स्वर्गलोक तथा उत्तम फलों की प्राप्ति होगी । आत्महत्या के प्रकार निम्न हैं 1. सूखे उपलों की धीमी अग्नि में अपने को जलाना, 2. गंगा-यमुना के संगम में डूब मरना, 3. गंगा की धारा में सिर नीचे कर जल पीते हुए मर जाना, 4. अपने शरीर के मांस को काट-काट कर पक्षियों को देना । पुराणों के अतिरिक्त गंगावाक्यावली, तीर्थ चिन्तामणि एवं स्थलीसेतु में भी प्रयाग में इस विधि से देहत्याग करने की अनुमति दी गई है । यद्यपि उन्होंने यह प्रशंसनीय व्यवस्था दी कि वृद्ध माता-पिता एवं युवा पत्नी 1 Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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