Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

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Page 19
________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् स्त्रियाँ हैं परन्तु इनके समान सुन्दर कहीं नहीं। ठीक है तारागण चन्द्रमा के ही साथ शोभा देते हैं अन्य ग्रहों के साथ नहीं।' इस प्रकार विचार करता हुआ राजा मृगध्वज का मन वर्षाऋतु की नदी के समान अहंकार से उछलने लगा। इतने में ही उस आम्रवृक्ष पर बैठा हुआ एक सुन्दर तोता समयोचित बोलनेवाले पंडित के समान बोला कि 'मनःकल्पित अहंकार किस क्षुद्रप्राणी को नहीं होता? देखो! कहीं आकाश अपने ऊपर न पड़ जाय इस भय से टिटहरी (गिलहरी) भी अपने पैर ऊँचे करके सोती है।' यह सुनकर राजा ने विचार किया कि 'अहो यह तोता कितना ढीठ है? अहंकार करनेवाले मुझ को यह बिलकुल तुच्छ क्यों बतलाता है। अथवा यह पक्षी जो कुछ बोलता है सो 'अजा-कृपाण, काकतालीय, 'घुणाक्षर व 'खलतिबिल्व(खलवाट) न्याय से सत्य सा मालूम होता है। परन्तु यह तोता तो बे मतलब स्वभाव से ही यह वाक्य बोला होगा। राजा इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि तोता पुनः एक अन्योक्ति बोला-' (इस वाक्य में मेंडक व हंस का परस्पर संवाद है) मेंडकः हे पक्षी! त कहां से आया है? हंस : में अपने सरोवर से आया हूँ। मेंडकः वह सरोवर कितना बड़ा है? हंस बहुत ही बड़ा है। मेंडकः क्या मेरे घर से भी सरोवर बड़ा है? हंसः हां, बहुत ही। यह सुनकर मेंडक हंस को गाली देने लगा कि 'हे पापी! तू मेरे सन्मुख क्यों असत्य बोलता है? धिक्कार है तुझे! इस पर हंस को यही समझ लेना उचित है कि 'क्षुद्रबुद्धि मनुष्य जरा सी कोई वस्तु पाता है तो भी वह बहुत अहंकार करता है। यह अन्योक्ति सुनकर राजा ने विचार किया कि 'इस तोते ने मुझे निश्चय कूपमंडुक (कुए के अन्दर रहनेवाला मेंडक) बनाया है। आश्चर्य है कि यह उत्तम पक्षी भी मुनिराज की तरह ज्ञानी है।' राजा यह विचार कर ही रहा था कि तोता पुनः बोला। 'मूखों के सरदार सदृश गंवार की कैसी मूर्खता है? कि जो अपने गाँव (खेड़ा-देहात) को स्वर्गपुरी के समान समझता है। झोंपडी को विमान समझता है। अपने खाने के अन्नादि को अमृत समझता है। पहनने ओढ़ने के कपड़ों को दिव्यवस्त्र समझता है। अपने आपको इन्द्र व अपने सर्व परिवार को देवताओं के समान गिनता है।' यह सुन राजा विचार करने लगा कि 'इस महापंडित ने मुझे गंवार समझा, इससे १. अचानक बकरी का आना और तलवार का पडना। २. कौवे का बैठना और ताल वृक्ष का गिरना। ३. लकड़ी में रहनेवाले घुन (कीड़ा) का कतरना और उसमें अक्षर का आकार बन जाना। ४. गंजे मनुष्य का वृक्ष के नीचे बैठना और उसके सिर पर बेल फल (बिल्ला) का गिरना। -

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