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श्राद्धविधि प्रकरणम् सामग्री के योग से चुल्लक आदि दश दृष्टान्त' से दुर्लभ ऐसे समकितादिक को पाता है। और उसे इस प्रकार पालता है जैसा कि शुकराज ने पूर्वभव में पाला था। शुकराज की कथा : ___इसी भरतक्षेत्र में असीम धन-धान्य से परिपूर्ण क्षितिप्रतिष्ठित नामक एक प्रसिद्ध नगर था। इस नगर में निस्त्रिंशता (क्रूरता) केवल खड्ग में, कुशीलता केवल हल में, जड़ता केवल जल में और बंधन (बीट) केवल पुष्प में ही था, किन्तु नगरवासियों में से कोई भी क्रूर, कुशील,जड़ अथवा बंधन में पड़ा हुआ दृष्टि में नहीं आता था। इसी नगर में कामदेव के सदृश रूपवान् व अग्नि के समान शत्रुओं का संहार करनेवाला ऋतुध्वज राजा का पुत्र मृगध्वज राजा राज्य करता था। राज्यलक्ष्मी, न्यायलक्ष्मी तथा धर्मलक्ष्मी इन तीनों स्त्रियों ने बड़ी प्रसन्नता से स्वयं अपनी इच्छा से उस राजा से पाणीग्रहण किया था।
एक समय वसन्तऋतु में, जिस समय कि प्रायः मनुष्य खेल क्रीड़ा का ही रस आस्वादन करते रहते हैं, उस वक्त मृगध्वज राजा अन्तःपुर परिवार सहित नगर के उद्यान (बगीचे) में क्रीड़ा करने गया और हाथी हथिनियों के समान अपनी रानियों के साथ जलक्रीड़ादिक अनेक प्रकार की क्रिड़ा करने लगा। उद्यान में भूमिरूपी स्त्री के ओढ़ने के छत्र समान एक विशाल सुन्दर आम्रवृक्ष था। उसे देखकर विद्या का संस्कार युक्त होने के कारण राजा कहने लगा कि पृथ्वी के कल्पवृक्ष के समान 'हे आम्रवृक्ष! तेरी छाया जगत् को बहुत प्यारी लगती है, पत्तों का समुदाय बड़ा ही मंगलिक गिना जाता है, यह प्रत्यक्ष देखते हुए तेरे पुष्प (म्होरे) का समुदाय अनुपम फलों की वृद्धि करता है, तेरा सुन्दर आकार देखते ही मनुष्य का चित्त आकर्षित हो जाता है, तथा तू अमृत के समान मधुर रसीले फल देता है, इसलिए बड़े-बड़े वृक्षों में भी तुझे अवश्य श्रेष्ठ मानना चाहिए। हे सुन्दर आम्रवृक्ष! अपने पत्र, फल, फूल, काष्ठ, छाया आदि संपूर्ण अवयवों से सर्व जीवों पर निशदिन परोपकार में रत! क्या तेरे समान अन्य कोई वृक्ष प्रशंसा करने योग्य है? जो बड़े बड़े वृक्ष अपने को आम्रवृक्ष के समान कहलवाते हैं उनको तथा उनकी प्रशंसा करनेवाले पापी, मिथ्यावादी कवियों को धिक्कार हो।'
इस प्रकार आम्रवृक्ष की स्तुति करके राजा संमानपूर्वक, जैसे कि देवतागण कल्पवृक्ष के नीचे बैठते हैं, आम्रवृक्ष की छाया के आश्रय में रानियों समेत बैठ गया। सम्पत्तिवान् तथा मणिरत्नादि वस्तुओं से अलंकृत इस प्रकार शोभायमान,मानों स्वयं मूर्तिमान श्रृंगाररस हो ऐसी सुशोभित अपनी रानियों को देखकर राजा मृगध्वज आश्चर्य से विचार करने लगा कि 'ये स्त्रियाँ कैसी हैं? मानो संपूर्ण पृथ्वी में से सारभूत निकाली हों। ऐसी स्त्रियाँ मुझे मिली, इसलिए देव की मेरे ऊपर अपूर्व कृपा है। वैसे तो घर-घर १. १ चोल्लग २ पासग ३ धण्णे ४ जुए ५ रयणेअ६ सुमिण ७ चक्के।
८ चम्म ९ जुगे १० परमाणु, दस दिटुंता मणुअलं भे॥ .