Book Title: Shatkhandagama Pustak 06
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
पृष्ठ नं. पंक्ति ४०४ २३ ४१३ २०
२३ २८ २६ १४ ५५ २७ १०२ २८ २६६ १४
Gc
शुद्धिपत्र
(४३) अशुद्ध
शुद्ध (१०००)
(१००००) अपेक्षा एक समय अपेक्षा जघन्यसे एक समय
(पुस्तक ५) निकला।
निकला (६)। सम्यग्मिथ्यादृष्टिका उक्त दोनों गुणस्थानोंका चारों क्षपकोंका चारों क्षपक और अयोगिकेवलियोंका जीवोंका जघन्य अन्तर जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर संख्यातगुणित
असंख्यातगुणित
(पुस्तक ६) लम्भदि
लब्भदि एयत्त
एयत्तं होज्ज?
होज । हो सके।
हो सके। अंती
अंतो एक अक्षरकी उत्पत्तिकी एक अक्षरसे उत्पन्न श्रुतज्ञानकी उपचारसे उपचारसे -रुक्खसंठाणाहोज -रुक्खसंठाणा होज होज्ज ण
होज । ण जीवेणोगाह
जीवेणोगाढ पुव्वत्त
पुवुत्त अगोपांग
अंगोपांग चत्तारि पयाडिसंबंधि चत्तारिपयडिसंबंधि सूक्ष्मसाम्पराथिक सूक्ष्मसाम्परायिक ( यहां........है ) सुगम है।
सुगम है । ( यहां संयतसे अभिप्राय अप्रमत्त
गुणस्थान तकके संयतोंसे है)। बंधवाच्छेदो
बंधवोच्छदो गोपुच्छाविशेषोंका गोपुच्छविशेषोंका पक्नेवसंक्खेव- पखेवसंखेव.
२०
९
२१
५२
३
mr orm
७२ ३ , २६-२७
८६ २६ १०१ १९-२०
२३
१४१ १५३
५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org