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सम्पादकीय वक्तव्य श्रावकाचार-संग्रहके द्वितीय भागके प्रकाशित होनेके एक वर्ष बाद उसका यह तीसरा भाग प्रकाशित हो रहा है। प्रथम भागमें ९ श्रावकाचार और दूसरेमें ५ श्रावकाचार प्रकाशित हुए हैं। इस तीसरे भागमें सब मिलाकर १९ श्रावकाचारोंका संकलन है. जिनमेसे ८ श्रावकाचार पूर्ण रूपमें स्वतंत्र है और शेष ११ विभिन्न ग्रन्थोंमेंसे श्रावक धर्मका वर्णन करनेवाले अंशोंको परिशिष्टमें दिया गया है। इनमेंसे लाटीसंहिताका प्रारंभिक कथामुखवाला भाग अनुपयोगी होनेसे छोड़ दिया गया है।
दूसरे भागके सम्पादकीयमें कहा गया था कि तीसरे भागके साथ विस्तृत प्रस्तावना दी जायगी, जिसमें संकलित श्रावकाचारोंकी समीक्षाके साथ श्रावकाचारका क्रमिक विकास और उनके कर्ताओंका परिचय भी दिया जायगा। किन्तु यह तीसरा भाग प्रारंभ के दोनों भागोंसे भो अधिक पृष्ठोंका हो गया है। यदि इसके साथ प्रस्तावना और श्लोकानुक्रमणिका दी जाती तो इसका कलेवर इससे दुगुना हो जाता। दूसरे यह भी निर्णय किया गया कि जब संस्कृत-प्राकृतमें उपलब्ध सभी श्रावकाचारोंका संकलन प्रस्तुत संग्रहमें किया गया है तो हिन्दीमें छन्दोबद्ध क्रियाकोषोंका संकलन भी क्यों न कर लिया जावे, जिससे कि उन अनेक ज्ञातव्य कर्तव्योंका बोध भी पाठकोंको हो जायगा, जिनका कि पालन श्रावकोंके लिए अत्यावश्यक है। अतः प्रस्तावना पढ़नेके लिए उत्सुक पाठकों और समीक्षकोंको चौथे भागको प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
श्रावकाचारकी जो प्रस्तावना लिखी जा रही है, उसकी कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं१. सभी श्रावकाचारोंके रचयिताओंका कालक्रमसे परिचय । २. प्रत्येक श्रावकाचारको विशेषताका दिग्दर्शन । ३. मूल गुणों एवं उत्तर गुणोंके वर्णनगत मत-भेद, उसका कारण और क्रमिक विकास। ४. पूजन विधिका क्रमिक विकास, ध्यान, जप, मंडल, व्रतादिपर विशद प्रकाश । ५. अतीचारोंका रहस्य । ६. प्रतिमाओंका उद्देश्य और श्वेताम्बर शास्त्रोंके साथ तुलना। ७. निदानके भेद-प्रमेद और श्वे० शास्त्र-गत विशिष्टता। ८. भक्ष्य पदार्थोकी काल मर्यादा। ९ वर्तमानमें जैन या पाक्षिक श्रावकके न्यूनतम कर्तव्य आदि। इसी प्रकार परिशिष्टमें श्लोकानुक्रमणिकाके सिवाय अनेक उपयोगी विभाग रहेंगे।
इस भागके साथ तीनों भागोंका शुद्धि-पत्रक भी दिया जा रहा है। प्रूफ-संशोधककी असावधानीसे २-३ भद्दी भूलें भी रह गई हैं, जिनका उल्लेख शुद्धि-पत्रकके प्रारम्भमें कर दिया गया है। पाठकगण उन्हें यथास्थान सुधारकर पढ़नेकी कृपा करें।
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