Book Title: Shabdaratna Pradip
Author(s): Hariprasad Shastri
Publisher: Rajasthan Purattvanveshan Mandir

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Page 8
________________ (१) जिन = वीतराग (जनोंके उपास्य देव), (२) जिन = विष्णु, (३) जिन = कन्दप, और (४) जिन = सामान्यकेवली । इनमेंसे प्रथमके दो अर्थ तो कोषोमें प्रसिद्ध हैं पर तीसरा और चौथा अर्थ जो दिया है वह प्रायः अन्य कोषोंमें नहीं देखने में आता। इसमें भी खास करके 'जिन'का चौथा अर्थ जो ‘सामान्यकेवली' ऐसा बताया गया है वह विशेष लक्ष्य देने योग्य है। जैन शास्त्रोंमें केवलज्ञान-प्राप्त आत्माको केवली कहते हैं। इनमें जो केवली तीर्थकर पदके धारक होते हैं वे तीर्थंकर कहलाते हैं और जो केवली तीर्थकर पदसे रहित होते हैं वे 'सामान्य केवली' कहलाते हैं पर दोनों प्रकारके केवली 'जिन' अवश्य कहलाते हैं। यह 'सामान्य केवली' वाला शब्दप्रयोग जैनशास्त्रोंके सिवा अन्यत्र कहीं देखने में नहीं आया है। यह केवल जैनशास्त्रका पारिभाषिक शब्द है। अतः कल्पना की जा सकती है कि इस कोषके कर्ताका जैन होना विशेष सम्भव है। ऐसा ही एक दूसरा उल्लेख भी हमें ध्यान देने लायक ज्ञात हुआ है। प्रथम मुक्तकके ७१ वें श्लोकमें 'जयन्ती' शब्दके चार अर्थ दिये हैं, जिनमें १) नगरीका वाचक है, (२) औषधीका वाचक है, (३) इन्द्रपुत्रीका वाचक है, और (४) 'चेटककी अनुजा'का वाचक है। यह उल्लेख खास करके जैन-कथासाहित्यसे ही संबन्ध रखता है। जैन कथासाहित्यके प्रामाणिक आधारोंसे ज्ञात है कि चेटकराज विदेहकी वैशालीका गणाधिनायक था और जयन्ती श्रमण तीर्थकर भगवान् महावीरकी एक उपासिका थी। इस ग्रन्थमें जयन्तीको 'चेटककी अनुजा' कही है। किंतु जैन कथा-साहित्यसे ज्ञात होता है कि वह चेटककी पुत्री मृगावतीकी ननन्द थी। इस बारेमें यह कहा नहीं जा सकता कि ग्रन्थकारके पास कोई दूसरी परंपरा थी अथवा उसकी गलती थी। जैन आगमोंमें और कथाग्रन्थों में इस जयन्तीका विशेषरूपसे उल्लेख मिलता है । अन्य किसी साहित्यमें इसका कोई निर्देश नहीं है। इससे उस कल्पनाको समर्थन मिलता है कि इस कोषका कर्ता कोई जैन विद्वान् होगा । प्रारम्भमें जो शिवका निर्देश है वह तो मंगलवाचक होनेसे जैनोंके लिये भी समान रूपसे स्मरणीय कहा जा सकता है। ग्रन्थका मुद्रण करते समय मूल प्राचीन प्रतियां सम्मुख उपस्थित न होनेसे कुछ पाठ शंकित और सन्दिग्ध रह गये हैं। अन्य किसी जगहसे इसके कोई प्रत्यन्तर प्राप्त नहीं हुए इसलिये उन शंकित स्थलोंका परिशोधन नहीं हो सका। अनेकान्तविहार, मुनि जिनविजय अहमदाबाद. सम्मान्य संचालक, भाद्रपद १५. वि. सं. २०१३ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर (२५-९-५६) ज य पुर

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