Book Title: Shabdaratna Pradip Author(s): Hariprasad Shastri Publisher: Rajasthan Purattvanveshan Mandir View full book textPage 6
________________ प्रधान संपादकीय वक्तव्य सन् १९४२ के दिसंबर से ४३ के अप्रेल तक के ५ महिने जैसलमेरके सुप्रसिद्ध प्राचीन जैन ज्ञानभंडारोंका विशेषरूपसे अवलोकन करनेका हमें सुअवसर मिला । हमारे साथ गुजरात विद्यासभा के प्राचीन साहित्य भण्डारके भाण्डागारिक (क्यूरेटर ) और गुजराती साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् एवं विवेचकलेखक, अध्यापकवर श्रीकेशवरामजी का शास्त्री तथा प्राकृतसाहित्य के मर्मज्ञ पण्डित श्रीयुत अमृतलाल मोहनलाल भोजक, एवं प्राचीन ताडपत्रीय ग्रन्थलिपिके प्रमाणभूत प्रतिलिपिकर्ता श्रीयुत चिमनलाल भोजक, रसिकलाल भोजक पं. शान्तिलाल शेठ तथा नागोरनिवासी मूलचंद व्यास, जयगोपाल व्यास, मेघराज व्यास आदि विद्वान् और सुयोग्य लेखकगणका अच्छा समूह था । उन पांच महिनोंमें हमने उक्त ग्रन्थभण्डारोमेंसे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन राजस्थानी, गुजराती, हिन्दी, व्रज आदि भाषाओमें रचे हुए छोटे-बडे सैंकडों ही अप्रसिद्ध - अज्ञात - अप्राप्य ग्रन्थोंकी प्रतिलिपियां करवाई । इनमें से कई ग्रन्थोंका तो हमने अपनी 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशन करना निश्चित किया, जिसके फलस्वरूप इतः पूर्व कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं और कई अभी प्रेसों में छप रहे हैं । राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाके १९ वें पुष्पके रूपमें, ' शब्दरत्नप्रदीप' नामक प्रस्तुत ग्रन्थ विद्वानोंके करकमलोमें उपस्थित है यह भी उसी जैसलमेरके 'ज्ञानभण्डारमेंसे प्राप्त हुआ था। उस ज्ञानभण्डारमें सुरक्षित दो-तीन प्राचीन प्रतियोंपरसे इस ग्रन्थकी प्रतिलिपिका काम विद्वद्वर्य्य श्री के. का. शास्त्रीने किया था। इसकी उक्त प्रतिलिपि गुजरात विद्यासभा के संग्रह में रखी गई है । हमारा लक्ष्य तभीसे इस ग्रन्थको प्रकाशमें लानेका रहा था । सन् १९५० में राजस्थान सरकार द्वारा, हमारे तत्त्वावधान में, राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिरकी स्थापना होने पर, हमने इस संस्था द्वारा राजस्थान की साहित्यिक समृद्धिको प्रकाशमें लानेके हेतु 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' के प्रकाशनका विस्तृत आयोजन किया । जैसलमेर एवं राजस्थान के अन्यान्य अनेक स्थानोंमें ऐसे सैंकडों ही ग्रन्थ छिपे पड़े हैं जो अभी प्रायः अज्ञात एवं अप्रकाशित हैं । यथाशक्य और यथासाधन इन ग्रन्थोंको प्रकाशमें लानेका हमारा सर्व प्रधान उद्देश्य रहा है और तदनुसार प्रस्तुत ग्रन्थमाला में अनेकानेक ग्रन्थ प्रकट करनेका प्रयत्न किया जा रहा है । कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रस्तुत ग्रन्थ भी उसी प्रयत्नका एक फल है । इस ग्रन्थके विषय में आवश्यक परिचय आदि ज्ञातव्य बातों का उल्लेख, संपादनकर्ता डॉ. हरिप्रसाद शास्त्री, एम्. ए., पीएच. डी. (आसिस्टेंट डायरेक्टर,Page Navigation
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