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करी छे. तो हम० (तथा हने०), त्रिश० अने थोडा घटनासंक्षेप अने पल्लवन साथे उदो०मां ते उवृ०ने (के तेना पूर्वस्रोतने) अनुसरीने पूर्व भवनो संपूर्ण वृत्तांत आपेलो छे. मात्र त्रिश०ए क्रमनी दृष्टिए सनत्कुमारना चरित्रनो पुनर्व्यवस्था करी होईने पूर्व भवनो वृत्तांत वच्चेथी खसेडी लईने सर्वप्रथम आरंभमां ज मूकी दीधो छे. आ बधी हकीकतो ध्यानमा लेतां विकासक्रमनी दृष्टिए पूर्व भवनो वृत्तांत सनत्कुमारचरित्रमा सौथी छेल्लो उमेरायो होय एम लागे छे. उवृ० अने हम०मां तथा हने मां पूर्व भवनो वृत्तांत कहेनार चन्द्रवेगनो कंचुको नहीं पण चन्द्रवेग पोतें ज छे, तो उदो०मां ते कहेनार भानुवेग छे. वळी हम०मां सौधर्मेन्द्र तरीके उत्पन्न थयेल विक्रमयशना जीव अने तेना ऐरावत तरीके जन्मेल नागदत्तना जीव वच्चेनो प्रसंग हरिभद्रे करेलो उमेरो छे.
आ रीते. एक तरफथी प्राकृत, संस्कृत अने अपभ्रंशमां रचायेला अने बीजो तरफथो श्वेतांबर के दिगंबर परंपराना केटलांक सनत्कुमारचरित्रोनी अहीं करेलो तुलना अने तारवणी उपरथी जोई शकाशे के सनत्कुमारनी कथानो विकास त्रण तबके थयो छे. रूपवैभवने क्षयधर्मी अने अनित्य समजी श्रमण बननार राजाना, अने प्रतिकार विना रोगोनो पीडा समतापूर्वक सहेनार महात्माना दृष्टांत तरीके सनत्कुमारना चरित्रनो जे अंश छे ते सौथी पुराणो जणाय छे. 'वसुदेवहिंडी'मां अने दिगंबर परंपरानां चरित्रोमां तेटलो ज भाग मळे छे. वहिं०मां ते भागनुं जे स्वरूप बंधायुं छे, ते ज, उपु०ना अने तेना पर अवलबंता मपु०ना
अपवादे सर्वत्र स्वीकार पाम्युं छे. मात्र ते पछी वृको॰ए तेमां केटलोक विगतो - उमेरी छे, जे पछीनी. श्वेतांबर-दिगंबर परंपरामां प्रचलित बनी छे. श्वेतांबर
परंपरामा पूर्व भवनो वृत्तांत अने चक्रवर्तीपद प्राप्त करवा सुधीनो वृत्तांत उवि०मां प्रथम वार देखाय छे, अने पछीनी ते परंपरानी रचनाओमां ते सर्वत्र स्वीकार पामे छे. आमां पूर्व भवनी कथा विनानुं एकेय चरित्र मळतुं नथी, छतां केटलीक रचनाओमां मळतुं तेनुं ढूंकु स्वरूप तथा त्रिश०मां थयेलो तेनो स्थानफेर लक्षमां लेतां ते अंश बीजा बे अंशोनी तुलनाए सौथी छेल्लो उमेरायानी अटकळ करी शकाय. आ उपरथी जोई शकाशे के सनत्कुमारचरित्र पूरतो एक तरफथी श्वेतांबर अने दिगंबर. परंपरानी वच्चे. लाक्षणिकपणे तफावत छे, तो बीजी तरफ बने परंपरानो एकबीजी पर प्रभाव पंण पडतो रह्यो छे, अने परस्पर कथासामग्रोनी आपले थती
रही छे.