Book Title: Santukumar Chariya
Author(s): H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 156
________________ १२० सनत्कुमारचरित मुखी विष्णुश्री ?' एम बोली राजा ऊन्यो, अने प्रधानोना कहेवाथी घोडे चडी, पोताना उत्तम परिचरोथो वीटळाईने त्रण लांघण पछी चोथे. दिवसे ज्यां वनमां नखावी दीधेली विष्णुश्री पडो हती त्यां पहोंच्यो. (६७९). त्यां जेना शरीरमां भरपूर परुमां कीडा खदबदता हता, सेंकडो कागडाओए जेनी आंखो ठोली नाखी हती, जेने अनेक गोधो, सेंकडो शियाळो अने हजारो कूतराए करडी, खाधी हती, जेना दांत गळी पड्या हता, मोढुं बीहामणुं बनी गयुं हतुं,. दुर्गंधथी जे जुगुप्सित लागती हती, हजारो पंखीओ जेना पर तूटी पड्यां हता, तेवी विष्णुश्रीने राजाए भाळी. (६८०). आथी वैराग्य स्फुरतां, धिक्कार छे, जेने कारणे में रमतमात्रमा शीलरत्न कलंकित कयु, कुळक्रम त्यज्यो, बधा य सज्जनोने आघात आप्यो, प्राकृत आचरण कयु, अपयश फेलाव्यो, अने जगतमां मारी ज़ातनी वगोवणी करावी, तेनी आवी मूरत थई गई ?' (६८१) ए प्रमाणे राजा विचारंवो लाग्यो. अने राज्यने पांजरा समुं, मित्रो ने स्वजनोने बंधन समा, विषयसुखने विषवृक्षना फळ समुं, तारुण्यने जळबिंदु समुं, जीवतरने हाथीना बच्चाना कान समुं, तरुणीओने दुर्गतिनी सरणि समी, चित्तने इन्द्रधनुष समुं, शरीरने बधी आपत्तिना घर समुं, तो प्रियजनना संगने अशुभ समो मनमा निर्धारीने, परमार्थने प्रोछीने, अर्धी क्षणमा ज उपर्युक्त वधी चीजवस्तु अने राज्यरिद्धि तजी दईने, पोताना समग्र कुटुंबने सुस्थ करीने, योग्य . मुनिमहाराजनी पासे जईने, जे पापना प्रपंचने पामी गयो छे तेवा ते राजाएं पुलकित बनीने तपश्चर्या लीधी. (६८२-६८३). . .. . ... ए पछी पापकर्मोनी ते निंदा करतो, गुरुना उपदेशने अनुसरतो, प्रायश्चित्त . अने तपश्चर्या सेवतो, मुनिने योग्य क्रियामोनुं अनुशीलन करतो, प्रयास करीने बधां शास्त्रोनो अर्थ ग्रहण करतो. ते एटले सुधी के टूक समयमां ज तेणे वे प्रकारनी शिक्षानुं ज्ञान मेळव्यु, अने बधो अंतिम समयनो विधि आचरीने पोतानी दिक्षाने सफल करतो ते पोताना भारे पापसमूहनो क्षय करीने, पुण्यभार संचित करीने, आ औदारिक शरीर तजी दईने, जीजा देवविमानमा पहोच्यो. दुःखे त्रासेलो नागदत्त पण भारे पापसमूह वांधीने मरण पाम्यो अने चार प्रकारनी. गति वाळा अने दुःखभारे भरेला घोर संसाररूपी वेरानमां पडयो. (६८४-६८५). पछी पुण्यथी रक्षित ते श्री विक्रमयश देव पोतानी अवस्थानी अवधि पूरी थतां शुभ दिवसे अने मुहूर्ते स्वर्गमाथी च्युत थयो भने सकडो पवित्र स्वप्नोना । संकेतोथी सूचवातो ते रत्नपुरना कोईक मोटा शेठना घणा. ज लवणवंता पुत्र

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