Book Title: Santukumar Chariya
Author(s): H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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उप्पत्ति कारणं पुण इमस्स देहस्स जं जय-पसिद्धं 1 तं चिंतियं पि विउसाण भायणं होइ लज्जाए ॥ २७६ असुईए सन्निहाणे सव्वासुइ-संग-मित्त-निव्वडिए । चिंतिज्जंत पि दढं सुइत्तणं होज्ज कह देहे ॥
रोग-जरा-मरण-भंगुर सरूवे ।
परिसीलणेक्क- रुइरे अवगय-तत्तेहिं कहं तणुम्मि कीरउ थिरावधो ॥ २८१
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इय
ता जह जह चिंतिज्जइ देहस्स थिरत्तणं सुइत्तं च तह तह विहडइ सयलं पवणोवहयं व सरयव्भं ।। २८२ वहु-वियप्प - सुविसुद्ध - भावणा भावियंतकरणेण । भुवण भहियं पि हु चक्कवट्टि लच्छिं परिचइउ || पय डेऊणं जिण-सासण- पहावणमणेग - भेएहिं । अहिसिंचिऊण महा-महेण निय-नंदणं रज्ज़े 1 पडलग्ग-तणं पिव उज्झिऊण सयलं परिग्गहारंभ ।। निक्खतो चक्कवई उसहायरियस्स पय- मूले ॥ तओ य
अणुचरियं धीर तए चरियं निययस्स पुव्व- पुरिसस्स । भरह महा-नरवईणो तिहुयण - विक्खाय- कित्तिस्स ॥ इय वहु-वियप्पमुववू हेऊणं सकुमार रायरिसिं ॥ तग्गुण- गहण-परा ते तियसा सुर-मंदिर पत्ता 11 भयवं पि हुभव-भीओ गुरु-भणिय - विहीए विहरिउमन्नत्थ । इत्थी - रयण- पमुहाणि पुण चऊद्दस वि रयणाणि ॥ नव-निहिणो वतीस - सहस्सा उण मउडवद्ध-नरवइणो । सव्वे वि आभिओगिय-तियसा सयणा य सव्वे वि || किं वहुणा चुलसीए लक्खा गय-तुरय-संदण - भडाण । इयरो वि समग्गो वि हु खंधावारो गुरु- दुहुत्तो ॥
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