Book Title: Santukumar Chariya
Author(s): H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 160
________________ सनत्कुमारचरित चारित्र्य सेववा लाग्यो, आ प्रमाणे केटलोक समय बीत्यो. पण आजे कोण जाणे केम कुमारे अमारी सौनी समक्ष एकांतमां कडं, 'चालो जलदी, मानससरोवरमां जलक्रीडा करवी !' (७१०). एंटले सुनंदा वगेरे राणीओ वंडे तथा उत्तम परिचारको वेडे सेवातो आर्यपुत्र जेवो अहीं आव्यों तेवो ज हे नररत्न, तु पण आवी पहोंच्यो', ए वेळा कुरुकुळनो गगनचंद्र पण ऊठीने विकसेला मुखकमळ साथे कंदलीगृहमांथी बहार आव्यो ७११). ते पछी स्वजनोने आनंदित करता, मेरुपर्वत जेवडा पूर्वे रळेला पुण्यसमूहने लोधे सुंदर, समग्र भुवनमा विस्तरेल निर्मळ ने बहोळी कीर्ति वाळा अने सरळ स्वभाव वाळा ते बंने जण समयोचित क्रिया पतावीने श्री वैताढयपर्वत उपर गया, (७१२). पछी बने विद्याधरश्रेणीओ पर. तरत ज पोतानी आण सर्वथा प्रवर्तावीने, तावे थता विद्याधरोनो उचित राज्याभिषेक करावतो, अनेक विधाधर कुमारीओने परणतो तथा जाते ज केटलीक विकसितमुखीओने राणीओ तरीके अंतःपुरमां स्थान आपतो (७१३) कुमारश्रेष्ठ सनत्कुमार, सूरराजाना पुत्रने मुखे, 'तमारां मातापिता तमोरा विना दुःखी थई रह्यां छे', एम सांभळीने, अनेक लाख विद्याधरराजाओ वडे अन्तरीक्षने भरी देतो अने समग्र जगतमां पोतानी महत्ता प्रगट करतो: हस्तिनागपुर पहोंच्यो. (७१४). . ते पछी तेणे मातापितानां चरणकमळनुं अभिवादन कयु, स्वजनोनुं भव्य स्वागत कयु, याचकोने विभूषित कर्या, जगतना लोकोना मुख पर संतोष प्रगटाव्यो अने बाजुमा रहेला सूरराजाना पुत्रने मुखे मातापिता अने अन्य जनोने पोतानो वृत्तांत आदिथी अन्त सुधो कही संभळाव्यो. (७१५). . एटले जाणे के अमृतकुंडमां झबोळायो होय, कल्पवृक्षनी प्राप्ति थई होय, घरमा ज कामधेनु अवतरी होय, चिंतामणि पाम्यो होय के चक्रवर्तीपदे राज्याभिषेक थयो होय तेम मित्रो अने स्वजनो सहित अश्वसेनराजा हर्षावेशथो भने सुक्ष्म विवेकपूर्वक विचारवा लाग्यो (७१६), 'अहोहो ! सारा कुळमां जन्म, . मति अद्भुत रूपश्री, विघ्न विनानुं जोवतर, जगतमां सर्वाधिक पांडित्य, पोताना भुजावळे रळेलु विपुल भोग माटे पूतुं धन, लोकने चमत्कृतं करतुं राज्य अने पराक्रमथी प्राप्त करेली दूर विस्तरती. कीर्ति-जगतमा ओ बधु धर्मना फळ तरीके धीर पुरुषो मेळवे छे. (७१७)'-आ प्रमाणे विचारता राजीए

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