Book Title: Santukumar Chariya
Author(s): H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 171
________________ १३५ २३ । २४ २५ २६ २७ अहयं तु नहयलाओ वि पायालाउ वि सलिल-निहिणो वि । धुवमुज्जमिउं सवप्पणा वि स-वयंसमाणिस्सं ।। जओ - विण्फुरइ ताव दिव्वो (?) विहडण-करण-तल्लिच्छो । जा न तुलिज्जइ साहस-धणेहिं निहसेक्क-सारेहिं ॥ काऊणं पुण जीयं तुलाए जे निखिवंति अप्पाणं । ते साहिति स-कज्ज संकइ दिव्वो वि जं तेसि ।। इय जे निच्छिय-मइणो अवहत्थिय-सुह-जसोह-सोडीरा । विण्णाय-गुण-विसेसा ताण सिरी देइ संनिझं ॥ इच्चाइ वहु-वियप्पं भणियं कहमवि महिंदसीहेण । निय-नाहो स-वलो वि हु पेसविओ आससेणो त्ति ।। सयमवि कमेण परिगलिय-सयल-सेन्नो महिंदसीहो सो । एगागी गच्छंतो पत्तो रणम्मि एगम्मि ॥ अह तत्थ तत्थ धावइ जत्तो जत्तो कहि-चि निसुणेइ । सदं अलक्खि पि हु तुरंग-करि-कलह-चमरीणं ॥ अवि य - कस्स न दलेइ हिययं मयरंदामोय-रंजिय-दियंतो । सहयार-मंजरी-रय-सणाह-गंधुद्धरो पवणो ॥ नव-वियसिय-कुडय-वणालि-सरस-कणियार-कुसुमसर-विसमा। अहिणव-महुमासूसव-दिण-सुहडा कं न निहणंति ॥ ओव्वेल्लेइ समीरो खर-सूर-करायाण नलिणीण । पंकोवरि दर-लुलियाइं थेव-सलिलाई पत्ताई ॥ खर-पवणुद्धय-रय-निवह-रंजियासामुहाण कलुसाण । को छुट्टइ जीयंतो उद्ध्धुलयाण दियहाण ॥ २८ २६ ३० . ३२ ३३

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