Book Title: Santukumar Chariya
Author(s): H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 141
________________ सनत्कुमारचरित 'आवी रिद्धि एने एकाएक कयांथो मळी ?' एम विचार करतो धीमेधीमे पाछळनी जग्या पसंद करीने, झाडनो छायामां ऊभा रहो, बंदिजनोने स्पष्ट स्वरे पाठ करता ते सांभळवा लाग्योः 'दुष्टोनां अभिमान दळीने चूर्ण करनार; नमन करनारने प्रचुर लक्ष्मीना दाता; कौरववंशने उज्ज्वळ करनार; अश्वसेनना कुलध्वज; युद्धमा सर्व विद्याधरोने जीतनार; विद्याधरोना चक्रवर्ती; पोताना तेजथी सूर्यने झांखो पाडनार; असिधारा वडे शत्रुश्रेणिओर्नु शमन करनार; गुणरत्नोना सागर; विद्याधरसुंदरीओना स्तनाग्रना संगमथो आनंदित--एवा जगतना तृपवर्य सनत्कुमारनो जय हो. (५६०-५६१). एटले 'खरेखर आ तो अमारा कुळंनो कल्पतरु, अश्वसेन राजानो पुत्र पोते ज छे'-एम निर्णय करीने ते शूर राजाना घरना आभूषणरूप महेन्द्रसिंह आवीने तेना पगमां पड्यो. एटले एकदम ऊभा थईने सनत्कुमारे शूर राजाना पुत्रने सहर्ष सामे मोंए सर्वांगे आलिंगन आंप्यु. (५६२). त्यार पछी बहुमूल्य आसन परं बेठेला, परस्पर विकसित मुख वाळा, प्रेम अने आनंदथी स्फुरायमाण, पोताना सर्व मित्रो अने स्वजनोना वत्सल, प्रथम मिलनने योग्य सत्कारविधि पामेला, नाम लेवा योग्य एवा ते बंने पूर्व दुःखने मुलीने एकत्र बेठा. (५६३). पछी पोतानी प्रिया विद्याधरपुत्रीओ वडे पोताना मित्रनो सत्कार करावी, तेने भोजन करावी, लांबा काळे थेयेला मिलनथी जेनां लोचन अश्रुपूर्ण बन्यां छे तेवो सनत्कुमार बोल्यो, "हे मित्र, कहे, मात्र भुजाओनी ज सहाय वाळो तुं धैर्य टकावी राखीने आ घोर जंगलमां कई रीते आवी पहोंच्यो ? (५६४). मारा वियोगे, गाढ स्नेहवाळां मारां माता-पितानी, तेम ज मंत्री, सामंत अने सज्जन लोकोनी शी दशा छ ? मारुं अपहरण थयेलं सांभळीने दुर्जनो मारा पिता प्रत्ये कई रीते वर्ते छे ?'-एटले मस्तकपर अंजलि रचीने अने पोतानो बधो ज पूर्वोक्त वृत्तांत क्षणेकमां जणांवीने शूरराजाना पुत्रे (५६५) का, 'तमे पण उत्तम अश्व तमने हरी गयों त्यार पछीनो तमारो वृत्तांत जणाववानी मारा पर कृपा करो.' एटले पोतानो वृत्तांत स्वमुखे कहेवाने अंशक्त कुंमारे विद्याबळे तत्त्वविशेष जाणी शकती पोतानी विमलमति नामनी प्रियाने आं विषयमा अनुज्ञा आपी. (५६६). 'घणा परिश्रमने लईने निद्राथी मारी आंखो घेराय छे, तो हुं अहीं थोडी क्षण विश्रांति लङ' एम कही, ऊठी जई, बधा परिजनने त्यां ज मूकी, कदळीगृहनी अंदर जईने, आगळथी करी राखेल शय्यामां ते वेठो, (अने महेन्द्रसिंह) कुमारनो वृत्तांत सांभळवा एकचित्त बन्यो. (५६७).

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