Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 01
Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr
Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (11) नाट्य-शास्त्र एवं नाट्य-साहित्य विषयक प्रकरणों में दशरूपक इत्यादि शास्त्रीय ग्रंथों में प्रतिपादित विविध नाटकीय विषयों के साथ सम्पूर्ण संस्कृत नाट्य वाङ्मय का विषयानुसार तथा रूपक प्रकारानुसार वर्गीकरण दिया है। इसमें अर्वाचीन संस्कृत नाटकों का भी परामर्श किया गया है। (12) अंत में ललित साहित्य के अन्तर्गत महाकाव्यादि सारे काव्य प्रकारों का परामर्श करते हुए संस्कृत सुभाषित संग्रहों और विविध प्रकार के कोशग्रथों का परिचय दिया है। 17 वीं शती के पश्चात् निर्मित संस्कृत साहित्य, पुराने पर्यालोचनात्मक वाङ्मयेतिहास के ग्रंथों में उपेक्षित रहा। स्वराज्यप्राप्ति के बाद इस कालखंड में लिखित संस्कृत साहित्य का समालोचन "अर्वाचीन संस्कृत साहित्य" "आधुनिक नाट्यवाङ्मय' इत्यादि विविध प्रबन्धों द्वारा हुआ। अर्वाचीन संस्कृत साहित्य को अब विद्वत्समाज में मान्यता प्राप्त हुई है। प्रस्तुत प्रकरण में सभी प्रकार के अर्वाचीन ग्रंथों का तथा पत्र-पत्रिकाओं एवं उपन्यासों का परामर्श किया है। "संस्कृत वाङ्मय दर्शन" के विभाग में इस पद्धति के अनुसार समग्र संस्कृत वाङमय के अतरंग का दर्शन कराते हुए विविध सिद्धान्तों, विचार प्रवाहों एवं उललेखनीय श्रेष्ठ ग्रंथों का संक्षेपतः परिचय देना आवश्यक था। कोश के ग्रंथकार खंड और ग्रंथ खंड में संस्कृत वाङ्मय का जो भी परिचय होगा वह विशकलित रहेगा। एक व्यक्ति के प्रत्येक अवयव के पृथक्-पृथक् चित्र देखने पर उस व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व का आकलन नहीं होता, एक सहस्रदल कमल की बिखरी हुई पंखुड़ियों को देखने से समग्र कमल पुष्प का स्वरूप सौंदर्य समझ में नहीं आता। उसी प्रकार वर्णानुक्रम के अनुसार ग्रंथों एवं ग्रंथकारों का संक्षिप्त परिचय जानने पर समग्र वाङ्मय तथा उसके विविध प्रकारों का आकलन होना असंभव मान कर हमने यह "संस्कृत वाङ्मय दर्शन" का विभाग कोश के प्रारंभ में संयोजित किया है। 81, अभ्यंकर नगर नागपुर- 440010 श्रीरामनवमी 7 अप्रैल 1988 श्रीधर भास्कर वर्णेकर संपादक संस्कृत वाङ्मय कोश For Private and Personal Use Only

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