Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 12
________________ यह जटिल संसार क्या है? यह जटिल संसार क्या है? डूबते मरुधार में नर के लिए पतवार क्या है ? जो सताये जा रहा उस देव का मनुहार क्या है ? है नहीं कुछ सार जिसमें देह से फिर प्यार क्या है? टीस जो दबती नहीं उस दर्द का उपचार क्या है? जो भुलावे में पड़ा उसका भला उद्धार क्या है ? संधि जिससे हो गई उस शत्रु का प्रतिकार क्या है? इस तरफ तो प्यार है उस पार का आधार क्या है? है स्वजन इस पार में उस पार में परिवार क्या है? कौन जाने स्वर्ग में नर के लिए अधिकार क्या है? है नहीं कुछ सार इसमें तो वहां का सार क्या है? क्या बता सकते वहां के लोग का व्यवहार क्या है? यह गीत एक प्रश्न- माला है। ये प्रश्न एक दिन मेरे मन के किसी कोने से उपजे थे। जिस कोने से प्रश्न उपजे थे, उसी के बगल वाले कोने से जवाब भी मिले थे। ... प्रश्न और उत्तर एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं, जुड़वे बच्चे हैं। आईने में हम झांकते हैं, तो जो झलक दिखाई देती है, वही तो उत्तर होता है हमारे जीवन का। आईने के सामने सारी समस्याओं का हल मिलता है। आईना समस्या नहीं है, समस्या तो जीवन है । आईना पहेली नहीं है, पहेली तो संसार है। प्रश्न और उत्तर वास्तव में बिम्ब- प्रतिबिम्ब हैं। संसार एक प्रश्न है और आईना उसका उत्तर। जैसा प्रश्न वैसा उत्तर। एक इंच भी फर्क नहीं पड़ता । चित्रकार फर्कडाल सकता है, फोटोग्राफर भी फर्क कर देता है, पर आईना तो हूबहू पेश करता है। इसलिए जो व्यक्ति अपने आपको जानने समझने में कुछ कठिनाई महसूस करता है, वह आईने को जरूर अपनाए। आईना हमारी प्रतिकृति है । संसार और समाधि Jain Education International For Personal & Private Use Only - चन्द्रप्रभ www.jainelibrary.org

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