Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 6
________________ आभार । प्रिय पाठकवृन्द ! 1 जैन जातिका इतिहास जितना विशद और फिर तितर-बितर है, उसको देखते हुये इस 'संक्षिप्त' रूपमें उसके पूर्ण दर्शन पाना अशक्य ही है । तौभी इस संक्षिप्त संस्करण से यदि आप लाभ उठायेंगे तो अवश्य ही हम अपने प्रयत्नको सफल समझेंगे । वस्तुतः समाजोत्थान के कार्य में उस समाजका इतिहास विशेष कार्यकारी होता है अतएव इससे समाजको लाभ पहुंचना बिलकुल संभव है । अस्तु । I इस 'संक्षिप्त इतिहास' के संकलनमें जिन श्रोतों से हमने सहायता ग्रहण की है, उन सबके प्रति हार्दिक आभार स्वीकार करना आवश्यक है । तथा जैनधर्मभूषण धर्मदिवाकर ब्रह्मचारी श्री शीतलप्रसादजीने इसकी लिखित कापीको पढ़कर हमें उचित सम्मतियाँ प्रदान की थीं, उनके लिये हम आपके विशेष आभारी हैं अथवा इसी सम्बन्धमें हम अपने प्रिय मित्र श्रीयुत् प्रोफेसर हीरालालजी जैन एम. ए. एलएल. बी. को नहीं भूल सकते हैं । आपने हमारे कहने पर इस पुस्तककी भूमिका लिखी है; जिसके लिए हम विशेष रीतिसे आपको हार्दिक धन्यवाद समर्पित करते हैं । सचमुच आपसे समाजको बड़ी आशायें हैं। श्री मा० दि० जैन परिषद् के प्रस्तावानुसार आप एक विशद जैन इतिहास तैयार करनेके कार्य में संलग्न हैं ? हमारी भावना है कि वह दिन शीघ्र आए जब आपद्वारा प्रणीत 'विशद इतिहास' समाजके हाथों में हो और वह उससे पूर्ण लाभ उठावे । एवम् भवतु ! इति शम् ! आपका --: हैदरावाद (सिंघ ) १-३-१९२६. - कामताप्रसाद जैन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com }

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