________________ 34 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 2 भी इस पल्योपमका काल अतिअल्प है। यह काल-प्रमाण जगत्की किसी भी ४८वस्तुका काल बताने में उपयोगी नहीं है। केवल आगे कहा गया 'सूक्ष्म-उद्धार पल्योपम' सुखसे जाना जा सके इसीलिए बादर उद्धार पल्योपमका स्वरूप बतानेमें आया है। इति बादरउद्धार-पल्योपम-स्वरूपम् // 1. ऐसे दस कोडाकोडी बादर-उद्धार-पल्योपमसे एक 'बादरउद्धारसागरोपम' होता है। सूक्ष्मउद्धार पल्योपमम् // 2 // सूक्ष्म-उद्धारपल्योपम - पहले बादर उद्धार पल्योपमके निरूपणमें जिस तरह कुआँ भरा है उसी तरह यहाँ भरा हुआ समझें / अब उस कुएँमें पहले जो सूक्ष्म बालाग्र भरे थे, उनमेंसे प्रत्येक बालात्रों के बुद्धिमान् पुरुष बुद्धिकी कल्पनासे असंख्य असंख्यखंड कल्पित करें। द्रव्यप्रमाणसे वे रोमखंड कैसे हों ? तो विशुद्ध लोचनवाला छद्मस्थ जीव जैसे सूक्ष्म [ आपेक्षिक सूक्ष्म ] पुद्गल-स्कंधको देख सकता है, उसके असंख्यात भाग जितने सूक्ष्म ये बालाग्र होते हैं। क्षेत्रसे इस बालापका प्रमाण बताते हुए कहते हैं कि सूक्ष्म-साधारण वनस्पतिकाय (निगोद )के जीवका शरीर जितने क्षेत्रमें सिमटकर रहता है, उसकी अपेक्षा असंख्यगुण अधिकक्षेत्रमें ये रोमखंड सिमट सकते हैं / साथ ही अन्य बहुश्रुत भगवन्त कथन करते हैं कि-असंख्यातवें भागके प्रमाणानुरूप जो बालाग्र हैं वे पर्याप्त बादर पृथ्वीकायके शरीर-तुल्य होते हैं। ये सर्व रोमखंड परस्पर समान प्रमाणवाले और सर्व अनन्त-प्रदेशात्मक होते हैं। इस तरह पूर्वकी रीतिसे पूर्वप्रमाणवाले उस पल्यके अंदर रहे जो बालाग्र जिनके सूक्ष्म उद्धार पल्योपमका प्रमाण निकालने के लिए (प्रत्येक ) के असंख्य असंख्य खंड कल्पित किये हैं, उन कल्पित बालात्रों मेंसे प्रतिसमय, एक एक बालाग्रको पल्यमेंसे बाहर निकाले, ऐसा करते हुए जितने समय में-कालमें वह पल्य बालापोंसे निःशेष हो जाए, उस कालको 'सूक्ष्म-उद्धार-पल्योपम' कहा जाता है। यह पल्योपम संख्याता करोड़ वर्ष प्रमाणका है। ऐसे दस कोडाकोडी सूक्ष्म-उद्धार-पल्योपमसे एक 2. ' सूक्ष्म-उद्धार-सागरोपम' होता है। इस सूक्ष्म-उद्धार पल्योपम और सूक्ष्म-उद्धार-सागरोपमसे ति लोकवर्ती असंख्यात द्वीप-समुद्रोंकी संख्याकी तुलना हो सकती है, क्योंकि पचीस कोडाकोडी [ 2500000000000000] सूक्ष्म उद्धार पल्योपमके जितने समय हैं उतने ही द्वापसमुद्र हैं, इसीलिए 49. जिसके लिए अनुयोगद्वारमें कहा है कि-" एएहिं वावहारिय-उद्धारपलिओवमसागरोवमेहिं कि पउ [ओ] यणं ? एएहिं वावहारिय-उद्धारपलि-ओवमसागरोवमेहिं णत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पन्नवणा, पन्नविज्जई / " [गा. 107] सूक्ष्म बालापोंसे उद्धार करते समय कालप्रमाण निकलनेसे यह नाम सान्वर्थक है /